बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं ?


प्रश्न 4. बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं ? भारतीय संस्कृति को इस धर्म का क्या योगदान रहा है
अथवा ''बौद्ध धर्म ने प्राचीन भारत की सांस्कृतिक प्रगति में क्या योगदान दिया?
अथवा ''महात्मा बुद्ध के जीवन और उपदेशों का वर्णन कीजिए।
अथवा ''महात्मा बुद्ध के जीवन-चरित्र पर प्रकाश डालिए तथा उनकी शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।

महात्मा बुद्ध का जीवन-चरित्र

महात्मा बुद्ध (गौतम बुद्ध) के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनका जन्म 563 ई. पू. में कपिलवस्तु से कुछ मील दूर लुम्बिनी वन में हुआ था। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु के शाक्य क्षत्रियों के एक छोटे गणराज्य के प्रधान थे। सिद्धार्थ की माता महामाया का निधन उनके जन्म के एक सप्ताह बाद हो गया। अतः सिद्धार्थ का पालन-पोषण उनकी माता की बहिन महाप्रजापति गौतमी ने किया, इसीलिए सिद्धार्थ गौतम कहलाए।
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गौतम प्रारम्भ से विलक्षण प्रवृत्ति के थे और साधारण बालकों की अपेक्षा खेलकूद से दूर रहते थे। गौतम को शास्त्र ज्ञान के साथ-साथ शस्त्र ज्ञान भी प्रदान किया गया। गौतम प्रारम्भ से ही एकान्तप्रिय और चिन्तनशील थे। वे प्रायः जामुन के वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यानमग्न हो जाते थे। उनके सम्बन्ध में भविष्यवाणी की गई थी कि यह बालक बड़ा होकर या तो बहुत बड़ा तपस्वी बनेगा या चक्रवर्ती सम्राट्।

सिद्धार्थ के पिता ने उनकी सांसारिक उदासीनता को देखते हुए 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह कर दिया। रूपवती पत्नी यशोधरा तथा सब प्रकार की विलासिता भी सिद्धार्थ का वैराग्य शान्त न कर सकी। नगर भ्रमण के समय मृतक, वृद्ध और संन्यासी को देखकर उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया और अन्ततः 29 वर्ष की अवस्था में अर्द्ध-रात्रि के समय पत्नी और पुत्र के मोह को छोड़कर राजमहल से निकल पड़े। बौद्ध साहित्य में यह घटना 'महाभिनिष्क्रमण' के नाम से जानी जाती है।
शान्ति तथा सत्य की खोज में -शान्ति और सत्य की खोज में घूमते हुए सिद्धार्थ आलार कालम नामक एक सांख्योपदेशक तपस्वी के पास गए, जिनके पास 300 छात्र शिक्षा पाते थे, परन्तु उन्हें यहाँ भी सन्तोष नहीं मिला। दूसरे  दार्शनिकों के पास होते हुए वे उस वेला के सघन वन में पहुँच गए जहाँ उन्हें पाँच साथी मिल गए। यहाँ पर उन्होंने शरीर को अनेक कष्ट देते हुए कठोर तपस्या की। अन्न-जल भी त्याग दिया। मरणासन्न स्थिति में पहुँच जाने पर भी उन्हें यहाँ ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ। इस दौरान कुछ नर्तकियों ने वन में गाते हुए प्रवेश किया। गाने का अभिप्राय यह था कि वीणा के तारों को इतना ढीला मत कसो कि उनसे ध्वनि ही न निकले और न उनको इतना कसो कि तार टूट ही जाएँ। इस घटना से गौतम ने मध्यम मार्ग अपनाया। उन्होंने शरीर को कष्ट देना बन्द कर दिया और भोजन ग्रहण करना प्रारम्भ कर दिया। इससे गौतम के पाँचों साथियों ने गौतम को पथभ्रष्ट समझकर उनका साथ छोड़ दिया।
ज्ञान की प्राप्ति (सम्बोधि) - अब गौतम सत्य अथवा ज्ञान की प्राप्ति के लिए गया में वट वृक्ष के नीचे अखण्ड समाधि लगाकर बैठ गए। आठवें दिन उनको ज्ञान प्राप्त हुआ। बोध अथवा ज्ञान प्राप्त करने पर वे बुद्ध अथवा तथागत कहलाए। इस प्रकार 35 वर्ष की आयु में गौतम ने बुद्धत्व प्राप्त कर लिया। इसके बाद गया को 'बोधगया' और उस वट वृक्ष को 'बोधि वृक्ष' कहा जाने लगा। उनके अनुयायी बौद्ध कहे गए।

बौद्ध धर्म के सिद्धान्त 

जन-साधारण के उद्धार के लिए वे सारनाथ पहुंचे और अपना प्रथम धर्मोपदेश दिया। इस धर्मोपदेश के बाद उनके पाँच साथी, जो साथ छोड़कर चले गए थे, उनके शिष्य बन गए। महात्मा बुद्ध का यह कार्य 'धर्मचक्र प्रवर्तन' कहलाता है। इसके बाद 45 वर्ष तक महात्मा बुद्ध एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम-घूमकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते रहे।
सारनाथ के बाद महात्मा बुद्ध राजगृह गए। वहाँ सम्राट् बिम्बिसार उनके अनुयायी हो गए। इसके बाद वे श्रावस्ती गए, वहाँ सम्राट् प्रसेनजित भी उनके भक्त हो गए। वे कपिलवस्तु गए, जहाँ उनकी माता गौतमी ने भी भिक्षुणी बनने की इच्छा प्रकट की। प्रारम्भ में तो गौतम बुद्ध इसके लिए तैयार नहीं हुए, परन्तु अपने शिष्य आनन्द की प्रार्थना पर महात्मा बुद्ध ने स्त्रियों को भी बौद्ध संघ में दीक्षित होने की अनुमति दे दी। इस प्रकार उनकी माता महाप्रजापति गौतमी तथा पत्नी यशोधरा ने भी प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। उनके पुत्र राहुल तथा गौतमी के पुत्र नन्द ने भी प्रव्रज्या ग्रहण कर ली।
महात्मा बुद्ध ने यह नियम बनाया कि किसी भी व्यक्ति को उसके मातापिता की अनुमति के बिना 'भिक्षु' नहीं बनाया जा सकता। इसके बाद महात्मा बुद्ध लिच्छिवियों की नगरी वैशाली गए। यहाँ पर उन्होंने आम्रपाली नामक वेश्या के निमन्त्रण पर उसके यहाँ भोजन किया। आम्रपाली ने अपना बाग महात्मा बुद्ध को दान कर दिया। 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर जाते समय उनका निधन हो गया, जिसे बौद्ध साहित्य में 'महापरिनिर्वाण' कहा गया है।
महात्मा बुद्ध को अपने धर्म-प्रचार में मौदगल्यायन एवं शारिपुत्र नामक दो ब्राहाणों से बहुत सहायता मिली। आनन्द उनका प्रिय शिष्य था। महात्मा बुद्ध ने अपने अधिकांश उपदेश उसी को सम्बोधित करते हुए दिए हैं। महात्मा बुद्ध ने किसी नये मत का प्रतिपादन नहीं किया। उन्होंने तो मनुष्यों के सामने एक ऐसा मार्ग रखा जिस पर चलकर मनुष्य जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो सकता है। महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म में सदाचार तथा नैतिकता को महत्त्व दिया है, इसीलिए कुछ पाश्चात्य विद्वानों ने बौद्ध धर्म को आचारशास्त्र कहा है। परन्तु यह मत ठीक नहीं है। कुछ विद्वान् बौद्ध धर्म को एक दर्शन मानते हैं, परन्तु यह भी उचित नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि महात्मा बुद्ध का धर्म बहुत व्यापक है, साथ ही अत्यधिक व्यावहारिक है। उनका धर्म मनुष्य के इसी जीवन से सम्बन्धित है। बौद्ध धर्म में अन्धविश्वास के लिए कोई स्थान नहीं है।
महात्मा बुद्ध ने अपनी माता महाप्रजापति गौतमी से कहा था कि "धर्म वही . है जो विराग का उपदेश देता है, असंग्रह का उपदेश देता है, जो इच्छाओं का दमन करता है, अध्यवसाय को बढ़ाता है।"

चार आर्य सत्य - महात्मा बुद्ध के चार आर्य सत्य निम्न प्रकार हैं

(1) दुःखबौद्ध धर्म इस संसार को दुःखपूर्ण मानता है, इसमें कोई मनुष्य सुखी नहीं है। सबसे बड़ा दुःख आवागमन है।
(2) दुःख समुदय-समुदय का अर्थ है-कारण। महात्मा बुद्ध के अनुसार आवागमन तथा समस्त दु:खों का कारण तृष्णा है।
(3) दुःख निरोध-तृष्णा का विनाश करने पर ही दुःख का विनाश (निरोध) सम्भव है।
(4) दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा-दुःख का निरोध करने के लिए महात्मा बुद्ध ने दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा नामक एक मार्ग का प्रतिपादन किया। इसके अन्तर्गत आठ सिद्धान्त हैं, इसलिए यह 'आष्टांगिक मार्ग' कहलाता है। महात्मा बुद्ध ने इसे निर्वाण की ओर ले जाने वाला मार्ग कहा है।
" अष्टांग मार्ग - इसके अन्तर्गत आठ सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं
(1) सम्यक् दृष्टि-इसका अर्थ है-सत्य-असत्य एवं पाप-पुण्य में अन्तर करना।
(2) सम्यक् संकल्प-विलासिता, हिंसा, ईर्ष्या, द्वेष आदि छोड़ देना।
(3) सम्यक् वाणी-सत्य और विनम्र भाषण करना चाहिए। किसी की निन्दा नहीं करनी चाहिए।
(4) सम्यक् कर्मान्तसदैव अच्छे कर्म करने चाहिए।
(5) सम्यक् आजीविका अपनी आजीविका ईमानदारी से कमानी चाहिए।
(6) सम्यक् व्यायाम मनुष्य को सदैव अच्छे प्रयत्न करने चाहिए।
(7) सम्यक् स्मृति-जो अच्छी बातें सीखी हैं, उन्हें याद रखना चाहिए।
(8) सम्यक् समाधि-- इसका अर्थ है कि चित्त की एकाग्रता।
गौतम बुद्ध की अन्य शिक्षाएँ - बौद्ध धर्म में आचरण की पवित्रता को मुख्य स्थान दिया गया है। इसके लिए महात्मा बुद्ध ने 10 नियम बताए.-

(1) अहिंसा,
(2) सत्य,
(3) अस्तेय (चोरी न करना),
(4) अपरिग्रह (अधिक संग्रह न करना),
(5) ब्रह्मचर्य,
(6) संगीत तथा नृत्य का त्याग,
(7) स्त्री तथा स्वर्ण का त्याग,
(8) असमय भोजन का त्याग,
(9) आरामदायक शय्या का त्याग, एवं
(10) सुगन्धित वस्तुओं तथा पुष्पों का त्याग।

महात्मा बुद्ध अनीश्वरवादी थे। महात्मा बुद्ध ने कहा है, 'ईश्वर-ईश्वर' कहना तथागत का कार्य नहीं है। 'कर्म-कर्म' कहना तथागत का कार्य है। महात्मा बुद्ध अनात्मवादी होते हुए भी पुनर्जन्म में विश्वास रखते थे। तृष्णा तथा अहंकार के नष्ट होने पर मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है। महात्मा बुद्ध पक्के कर्मवादी थे। महात्मा बुद्ध जाति प्रथा के विरोधी थे, वे चारों वर्गों में कोई अन्तर नहीं मानते थे।
बौद्ध धर्म का भारतीय संस्कृति को योगदान
भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म के योगदान को निम्न शीर्षकों के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं
(1) भारतीय दर्शन का विकास-
बौद्ध धर्म के उदय के पश्चात् बौद्ध धर्म से सम्बन्धित विभिन्न दार्शनिक सम्प्रदाय विकसित हो गए। इनके विचारों में भिन्नता थी। इनके भिन्न विचारों की आलोचना हेतु अन्य विचारधाराओं को विकसित होने का अवसर प्राप्त हुआ। परिणामतः भारतीय दर्शन और अधिक समृद्ध होता चला गया।
(2) भारतीय संस्कृति का प्रसार-
भारत के बौद्ध भिक्षुओं ने दूसरे देशों में जाकर अपन धम का प्रचार-प्रसार किया। परिणामतः अन्य देशों में भी भारतीय संस्कृति का प्रसार हुआ।
(3) बाह्य देशों से सम्पर्क-
बौद्ध धर्म की सबसे महत्त्वपूर्ण देन यह है कि इसने भारत का अन्य देशों से निकटतम सम्पर्क स्थापित कर दिया। दूसरे देशों में जाने से भारत के कूटनीतिक सम्बन्धों में भी वृद्धि हुई।
(4) साहित्यिक प्रगति-
बौद्ध धर्म के विकास से पूर्व भारत का अधिकांश । साहित्य संस्कृत में रचित था। किन्तु बौद्ध धर्मावलम्बियों ने तत्कालीन लोकभाषा पालि और प्राकृत में साहित्य रचना की। 'त्रिपिटक', 'बुद्धचरित', 'सौन्दरानन्द, 'ललित-विस्तर', 'दिव्यावदान' आदि बौद्ध साहित्य के उल्लेखनीय ग्रन्थ हैं।
(5) कला का विकास-
बौद्ध धर्म ने भारतीय कला को भी व्यापक रूप से प्रभावित किया। अजन्ता व एलोरा की गुफाएँ, सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए शिलालेखों व स्तूपों पर बौद्ध कला का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।



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