भारत के मध्यकाल की स्थापत्य कला


प्रश्न 8. मुगल स्थापत्य कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा 'मध्य काल में स्थापत्य कला के विकास का विवरण दीजिए।
अथवा 'मध्यकालीन भारत की वास्तुकला पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - सभी मुगल सम्राट् भवन-निर्माण एवं स्थापत्य कला के प्रेमी थे। स्थापत्य कला को भवन निर्माण कला, वास्तुकला एवं शिल्पकला के नाम से भी जाना जाता है। मुगल सम्राटों ने ईरानी ब हिन्दू शैली के समन्वय द्वारा मुगल शैली का निर्माण व उसका विकास किया, जिसकी छाप इनकी सभी कलाओं पर दिखाई देती है। यद्यपि फर्ग्युसन जैसे इतिहासकारों का कहना है कि मुगलों की भवन-निर्माण कला की शैली विदेशी है, परन्तु यह मत ठीक नहीं है। हैवेल ने कहा है, "मुगल वास्तुकला देशी व विदेशी शैलियों का सम्मिश्रण है।" सर जॉन मार्शल ने लिखा है, "भारत जैसे विशाल व असामान्यता तथा विभिन्नता वाले देश में यह नहीं कहा जा सकता कि भवन-निर्माण कला किसी एक ही विशिष्ट देशव्यापी शैली को लेकर स्थिर रही। भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न शैली का प्रयोग किया गया है।" वस्तुत: विभिन्न कालों में मुगल कला विभिन्न प्रकार की रही है।
भारत के मध्य काल की स्थापत्य कला

मध्य काल में स्थापत्य कला 

(वास्तुकला) का विकास संक्षेप में, मध्य काल में स्थापत्य कला का विकास निम्न प्रकार रहा है

(1) बाबर की स्थापत्य कला - 

बाबर भारतीय स्थापत्य कला को अच्छा नहीं समझता था, इसीलिए उसे आगरा व दिल्ली में भारतीयों द्वारा बनवाई गई इमारतें पसन्द नहीं आई। बाबर ने भवनों के निर्माण के लिए कुस्तुनतुनिया से कारीगरों को बुलवाया। बाबर ने आगरा, अलीगढ़, सीकरी, धौलपुर, बयाना, ग्वालियर आदि स्थानों पर कुएँ, तालाब, फब्बारे आदि बनवाए। बाबर द्वारा बनवाए गए निम्नलिखित दो भवन ही आज दिखाई देते हैं



(i) पानीपत की काबुली मस्जिद, और (ii) सम्भल की जामा मस्जिद।
ये दोनों मस्जिदें 1526 ई. में बनवाई गई थीं। इन मस्जिदों में कोई विशेष नमूना नहीं है।

(2) हुमायूँ की स्थापत्य कला -

हुमायूँ का अधिकांश जीवन युद्धों व भाग-दौड़ में बीता, अत: उसे इमारतें बनवाने का समय नहीं मिला। फिर भी हुमायूँ ने 'दीन-ए-पनाह' नामक महल दिल्ली में बनवाया। शेरशाह सूरी ने शायद इसे नष्ट कर दिया। हुमायूँ ने फतेहाबाद व आगरा में भी मस्जिदें बनवाई। स्थापत्य कला की एक महत्त्वपूर्ण कृति हुमायूँ का मकबरा है। यद्यपि इसका निर्माण अकबर के प्रारम्भिक शासनकाल में हुआ, परन्तु यह हुमायूँ के काल की इमारत है। यह मकबरा ईरानी और भारतीय शैलियों के मिश्रण का नमूना है। इसमें फारसी शैली का प्रभाव भी है। '

(3)शेरशाह की स्थापत्य कला - 

शेरशाह-वास्तुकला का बहुत प्रेमी था। वह प्रत्येक शहर में एक किला बनवाना चाहता था और मिट्टी की बनी हुई सरायों को पक्के मकानों में बदलकर उन्हें राज्य की सुरक्षा करने की चौकियाँ बनाना चाहता था। दिल्ली का पुराना किला शेरशाह सूरी द्वारा बनवाया हुआ है। शेरशाह सूरी द्वारा बनवाई गई प्रसिद्ध इमारतों में शेरशाह का मकबरा भी है। बिहार के सहसराम में झील के बीच में बना हुआ यह मकबरा अपनी भव्यता, सुन्दरता  और सुडौलता की दृष्टि से हिन्दू-मुस्लिम शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है।

(4) अकबर की स्थापत्य कला -

मुगलों की स्थापत्य कला सही अर्थ में अकबर के शासनकाल से प्रारम्भ होती है। अकबर ने अपनी स्थापत्य कला में ईरानी व भारतीय कला का समन्वय किया। अकबर के काल की सभी इमारतें लाल पत्थर की हैं और सजावट के लिए संगमरमर का प्रयोग किया गया है।
अकबर द्वारा बनवाए गए भवन या इमारतें निम्न प्रकार हैं

(i) आगरे का लाल किला, (ii) जहाँगीरी महल, (iii) अकबरी महल,(iv) लाहौर का किला, (v) इलाहाबाद का किला, (vi) दीवान-ए-आम(vii) जोधाबाई का किला, (viii) बीरबल का महल,
(ix) पंचमहल, यह भी सीकरी में है और हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य का मिश्रण
(x) जामा मस्जिद, इसका निर्माण 1571 ई. में हुआ। यह चित्रकारी की दृष्टि से फतेहपुरी सीकरी की सर्वश्रेष्ठ इमारत है।
(xi) बुलन्द दरवाजा, इसे अकबर ने गुजरात की विजय के बाद बनवाया था। यह फतेहपुर सीकरी में स्थित है और मुगलकालीन दरवाजों में श्रेष्ठ है।
(xii) शेख सलीम चिश्ती का मकबरा, यह 1571 ई. में बना था। इसकी चित्रकारी देखने योग्य है।
(xiii) सिकन्दरा, इसका निर्माण कार्य अकबर ने प्रारम्भ करवाया था, परन्तु यह 1623 ई. में जहाँगीर के शासनकाल में बनकर तैयार हुआ।

अकबर द्वारा बनवाए गए भवनों की इतिहासकारों ने बड़ी प्रशंसा की है।  स्मिथ ने फतेहपुर सीकरी की इमारतों को अभूतपूर्व व पत्थर पर अंकित कहानी कहा है।

(5) जहाँगीर की स्थापत्य कला

जहाँगीर को चित्रकला से ही अधिक लगाव था, वास्तुकला से नहीं। उसके समय की दो इमारतें प्रमुख हैं
(i) एत्मादुद्दौला का मकबरा- यह मकबरा नूरजहाँ ने अपने पिता की याद में 1626 ई. में बनवाया था। यह आगरा में स्थित है और सफेद संगमरमर का बना है।
(ii) जहाँगीर का मकबरा-इसका निर्माण भी नूरजहाँ द्वारा करवाया गया था। यह लाहौर के निकट रावी नदी के किनारे शाहदरा में स्थित है। समाधि पर संगमरमर की पच्चीकारी की गई है।
(6) शाहजहाँ की स्थापत्य कला - भवन-निर्माण की दृष्टि से शाहजहाँ का काल मुगल काल का स्वर्ण युग था। उसके द्वारा बनवाई गई इमारतों में मौलिकता, सुन्दरता और कोमलता है। इन भवनों में नक्काशी व चित्रकारी विशेष है। शाहजहाँ के काल में निम्नलिखित इमारतों का निर्माण हुआ
(i) आगरा के किले में निर्मित इमारतें - शाहजहाँ ने अकबर द्वारा लाल किले में लाल पत्थर से बनवाई गई इमारतों को तुड़वाकर उन्हें संगमरमर से बनवाया। ये इमारतें हैंदीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, मच्छी भवन, शीश महल तथा खास महल, झरोखा दर्शन और मुसम्मन बुर्ज, नगीना और मोती मस्जिद।

 (ii) ताजमहल - 

शाहजहाँ द्वारा बनवाई गई सर्वश्रेष्ठ इमारत आगरा का ताजमहल है, जिसे उसने अपनी प्रिय बेगम मुमताज महल की याद में बनवाया था। इसकी गणना विश्व के सात आश्चर्यों में की जाती है। यह 22 वर्षों में बनकर तैयार हुआ। यह इमारत फारसी ढंग से बनी हुई है, फिर भी बहुत-सी शिल्पकला हिन्दू ढंग की है। पर्सी ब्राउन ने ताजमहल को मुगल वास्तुकला की पूर्णता का प्रतीक कहा है। इसके निर्माण में लगभग 50 लाख व्यय हुआ था।
(iii) दिल्ली का लालकिला - शाहजहाँ ने 1632 ई. में दिल्ली में यमुना नदी के किनारे एक विशाल किले का निर्माण करवाया। इसमें दो दरवाजे हैं। इसमें दीवान-ए-खास, दीवान-ए-आम और रंगमहल बहुत सुन्दर हैं। दीवान-ए-खास की दीवार पर लिखा है, "अगर फिरदौस बरसरा जमीनस्त हमीनस्त, हमीनस्त, हमीनस्त" अर्थात् धरती पर यदि कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यहीं है।
(iv) दिल्ली की जामा मस्जिद-शाहजहाँ ने दिल्ली में लालकिले के निकट जामा मस्जिद बनवाई। यह लाल पत्थर की बनी हुई है।
(v) तख्त-ए-ताऊस (मयूर सिंहासन)--शाहजहाँ ने मयूर की शक्ल का एक सिंहासन बनवाया था। यह पलंग के आकार का था तथा सोने का बना था। आकार में गज लम्बा, गज चौड़ा और 5 गज ऊँचा था। पूरा सिंहासन रत्नों से जगमगाता रहता था, परन्तु आज यह तख्त-ए-ताऊस नहीं है।
(7) औरंगजेब की स्थापत्य कला - अपने पूर्वजों के विपरीत. औरंगजेब ने ललित कलाओं के प्रति कोई प्रेम प्रदर्शित नहीं किया। उसने बहुत कम इमारतें बनवाईं, परन्तु इनमें से कोई भी उसके पिता, पितामह और प्रपितामह द्वारा बनवाई गई इमारतों के समकक्ष नहीं है। दिल्ली की जिस एकमात्र इमारत से औरंगजेब का नाम सम्बन्धित है, वह है लालकिले में स्थित सफेद संगमरमर की मस्जिद । औरंगजेब ने 1679 ई. में अपनी प्रिय बेगम रबिया-उद्-दौरानी का मकबरा दक्षिण में औरंगाबाद में बनवाया था। यह द्वितीय ताजमहल के नाम से प्रसिद्ध है। ताज की नकल होते हुए भी यह डिजायन, कारीगरी और रचना में उससे कहीं होन है।  औरंगजेब द्वारा बनवाई गईं लाहौर की बादशाही मस्जिद तथा बनारस एवं मथुरा की मस्जिदें भी उल्लेखनीय हैं।


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