19वीं शताब्दी में भारतीय मध्यम वर्ग - उदय और विकास

प्रश्न 14. 19वीं शताब्दी में भारतीय मध्यम वर्ग की भूमिका का परीक्षण कीजिए।

अथवा ''18वीं तथा 19वीं शताब्दी के मध्य भारतीय समाज में मध्यम वर्ग के उदय और विकास का वर्णन कीजिए।

उत्तर भारत में आधुनिक मध्यम वर्ग का उदय ब्रिटिश शासनकाल में हुआ। भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना के साथ ही यह बात स्पष्ट होने लगी कि परम्परागत भारतीय मध्यम वर्ग अब अपने पुराने रूप में नहीं बना रह सकता। इसके अनेक कारण थे। भारत में मध्यम वर्ग का विकास यूरोपीय देशों में हुए मध्यम वर्ग के विकास से भिन्न था। इंग्लैण्ड में मध्यम वर्ग का उदय मूलतः आर्थिक और तकनीकी परिवर्तनों के कारण हुआ और इस वर्ग के सदस्य मुख्यतः व्यवसायों और उद्योगों से सम्बन्धित रहे। इसके विपरीत भारत में वे प्रधानतः सार्वजनिक प्रशासन और कानून व्यवस्था के परिवर्तन के कारण अस्तित्व में आए और उनका सम्बन्ध मुख्यतया बौद्धिक कार्यों से रहा। आधुनिक भारतीय मध्यम वर्ग और यूरोपीय मध्यम वर्ग में यह एक प्रमुख अन्तर है।

भारतीय मध्यम वर्ग में व्यापारी, सर्राफ, व्यावसायिक एवं तकनीकी लोग, दलाल, बनिए, दुभाषिए तथा प्रशासन में कार्य करने वाले विभिन्न प्रकार के लोग सम्मिलित थे। यदुनाथ सरकार के शब्दों में, "इस नवीन मध्यम वर्ग का जन्म मुगल काल के मध्यम वर्ग से सर्वथा भिन्न था, क्योंकि इस वर्ग को राज्य का अनुग्रह अथवा संरक्षण प्राप्त नहीं था। इसके विपरीत इसको जन्म अपने बाहुबल से प्राप्त हुआ, क्योंकि उसे विश्वास था कि इसके बिना सरकार का और समाज का काम नहीं चल सकता।"

भारत में मध्यम वर्ग के उदय के कारण

भारत में सामाजिक परिवर्तन के प्रणेता और कर्ता मध्यम वर्ग के उदय के निम्नलिखित कारण थे--

(1) आर्थिक परिवर्तन

ब्रिटिश शासन के परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड में घटित औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव भारत में भी दिखाई देने लगा। भारत में नवीन उद्योगों, फैक्ट्रियों व कारखानों में मशीनों से उत्पादन होने लगा, जिनमें सभी जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के कार्य करने लगे। इससे जाति व्यवस्था की कठोरता में शिथिलता आई तथा निम्न वर्ग के लोग भी सम्पन्न हो गए। समाज में नवीन मध्यम वर्ग की संख्या में वृद्धि हुई, जो समाज-सुधार द्वारा देश की आर्थिक प्रगति के लिए प्रयत्नरंत हुआ।

middle class in Indian society in the mid-19th century

 (2) अंग्रेजी शिक्षा-

अंग्रेजों ने भारत में पाश्चात्य शिक्षा पद्धति को लागू किया, जिसमें दीक्षित होकर भारतीय समाज में एक नये वर्ग, मध्यम वर्ग का उदय हुआ, जिसने समाज-सुधार द्वारा सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में सरकार को सहयोग दिया। मैकाले और लॉर्ड हार्डिंग्स की शिक्षा नीति के फलस्वरूप भारतीय समाज में मध्यम वर्ग का आविर्भाव हुआ, जो सामाजिक परिवर्तन का अग्रगामी बना।

प्रश्न 13. ब्रिटिश शासनकाल में हुए विभिन्न किसान आन्दोलनों पर प्रकाश डालिए।

(3) पश्चिमीकरण की प्रक्रिया-

ब्रिटिश शासकों के सम्पर्क तथा उनकी सम्पन्नता से प्रभावित होकर मध्यम वर्ग पाश्चात्य सभ्यता, रीति-रिवाज, भाषा, साहित्य तथा मूल्यों की ओर आकृष्ट हुआ और उन्हें अपनाकर स्वयं को सम्मानित अनुभव करने लगा। इस मध्यम वर्ग में उच्च पद पर नियुक्त सरकारी कर्मचारी, डॉक्टर, वकील, व्यापारी, इंजीनियर, राजनीतिज्ञ आदि सम्मिलित थे, जो अपनी अंग्रेजी शिक्षा-दीक्षा व पाश्चात्य सभ्यता के कारण परम्परागत भारतीय समाज में प्रतिष्ठित स्थान पाकर अनुकरणीय बन गए। इस मध्यम वर्ग ने समाज पर अपने प्रभाव द्वारा सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया तीव्र की, जिससे मध्यम वर्ग की संख्या में वृद्धि होने लगी।

(4) नगरीकरण-

ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा नगरीय क्षेत्रों के परम्परागत भारतीय समाज में नवीन बुद्धिजीवी या मध्यम वर्ग का आविर्भाव पहले हुआ। औद्योगीकरण तथा वाणिज्य व व्यवसाय की वृद्धि के साथ नये नगरों का निर्माण हुआ और पुराने नगरों का विकास हुआ। उद्योग-धन्धों में नौकरी के आकर्षक अवसरों के कारण नगरों में मध्यम वर्ग की संख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी।

(5) प्रशासनिक सुधार

ब्रिटिश शासनकाल में विभिन्न प्रशासनिक सुधारों ने भी मध्यम वर्ग के उदय को प्रेरणा दी। बिना किसी जातिगत भेदभाव के योग्यता के आधार पर सभी को नौकरी के अवसर प्रदान किए गए, जिससे निम्न तथा मध्यम जाति के लोगों में गतिशीलता आई और वे समाज में प्रतिष्ठा पाने लगे। देश के ब्रिटिश अधिकृत विशाल भूभाग में एक ही प्रकार की कुशल प्रशासनिक व्यवस्था लागू होने से अराजकता की स्थिति दूर हुई तथा राष्ट्रीय एकता एवं समाज-सुधार को प्रेरणा मिली, जिसका नेतृत्व मध्यम वर्ग ने किया।

(6) मानवतावादी विचारधारा -

मानवतावादी विचारधारा पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का ही अंग है। पाश्चात्य देशों में विकसित समानता, विवेकीकरण, लोकतन्त्र आदि मूल्यों ने भारतीय समाज को व्यापक रूप से प्रभावित किया। परम्परागत रूप से प्रचलित मानवता विरोधी असंगत सामाजिक रीति-रिवाजों को त्यागकर उनमें सुधार लाने की प्रेरणा मिली।

(7) यातायात एवं संचार के साधनों का विकास

ब्रिटिश शासनकाल में रेलों, सड़कों तथा जलमार्गों के विकास से यातायात के साधनों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ एवं डाक-तार की व्यवस्था द्वारा संचार साधनों का विकास हुआ। इससे देश में एकरूपता आई तथा पाश्चात्य विचारों का प्रसार हुआ। परम्परागत जाति बन्धन टूटने लगे और मध्यम वर्ग की संख्या में वृद्धि हुई।

(8) समाज-सुधार आन्दोलन-

बुद्धिजीवी वर्ग के कुछ लोगों ने समाजसुधार हेतु आन्दोलन किए तथा अनेक संस्थाएँ स्थापित की, जिसके फलस्वरूप प्रगतिशील मध्यम वर्ग का उदय हुआ, जो सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में सहायक सिद्ध हुआ।

(9) समाज-सुधार एवं कानून-

बुद्धिजीवी मध्यम वर्ग के सहयोग से समाज-सुधार हेतु जनमत तैयार हुआ, जिसके आधार पर ब्रिटिश सरकार ने अनेक सामाजिक कुरीतियों को मिटाने हेतु कानून बनाए। इससे समाज-सुधार को एक नई दिशा मिली तथा मध्यम वर्ग की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती गई। इस वर्ग के लोगों ने इन सुधारों को क्रियात्मक रूप प्रदान किया तथा भावी सुधारों के लिए आन्दोलन किए।

(10) यूरोपीय व्यापार-

अंग्रेजी कम्पनी की स्थापना के साथ ही भारत में कलकत्ता, बम्बई, मद्रास आदि प्रमुख नगरों का विकास हआ। कुछ नगर व्यापारिक केन्द्र के रूप में विकसित हुए। व्यापार के प्रसार के साथ तकनीकी वर्ग का भी उदय हुआ। अंग्रेजी कम्पनी को प्रशासन का संचालन करने के लिए कर्मचारियों की आवश्यकता अनुभव हई। इस प्रकार अनेक भारतीयों ने राजस्व अधिकारियों, दीवान आदि के पदों पर कार्य करना आरम्भ कर दिया।

मध्यम वर्ग की भूमिका ब्रिटिश शासनकाल में देश में औद्योगीकरण प्रारम्भ हुआ। लघु एवं कुटीर उद्योगों के स्थान पर फैक्ट्रियों तथा मिलों में मशीनों द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा। इन फैक्ट्रियों में परम्परागत भारतीय समाज के सभी जातियों के मजदूर " कार्य करने लगे। आर. सी. मजूमदार, एच. सी. राय चौधरी व के. दत्ता का कथन है कि "फैक्ट्रियों में कार्य करने हेतु परम्परागत समाज के सभी स्तरों के लोग . आकर्षित होने लगे, क्योंकि वहाँ उन्हें अपेक्षाकृत अधिक मजदूरी मिलती थी।" श्रीनिवास का भी यही मत है कि "उपलब्ध साक्ष्यों से यह स्पष्ट होता है कि सभी जातियों के हिन्दू औद्योगिक क्षेत्र में सभी प्रकार के कार्य खोजकर स्वीकार करने लगे और यह ऐतिहासिक तथ्य है।" इस प्रकार जाति बन्धन टूटने लगे तथा अपनी योग्यता के आधार पर आर्थिक क्षेत्र में भी मध्यम वर्ग का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

 अंग्रेजों की भू-राजस्व नीति के फलस्वरूप मध्यम वर्ग के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में भूस्वामी बनकर अथवा कृषि कार्य में संलग्न होकर कृषि उत्पादन की वृद्धि में सहायक हुए। ग्रामों में अंग्रेजों की स्थायी भू-राजस्व नीति तथा रय्यतवाड़ी प्रथा के कारण परम्परागत भूस्वामियों के स्थान पर कृषकों को भूमि का स्वामित्व मिला, जिसके कारण नवीन मध्यम वर्ग का वर्चस्व बढ़ा। अंग्रेजों की समानता की नीति से समाज के सभी वर्गों को व्यापार एवं वाणिज्य द्वारा जीवनयापन करने का समान अधिकार मिला। इस क्षेत्र में भी मध्यम वर्ग की भूमिका उल्लेखनीय रही।

ब्रिटिश शासनकाल में सड़कों, रेलों, वाष्पचालित जलयानों आदि परिवहन के साधनों, डाक-तार आदि संचार के साधनों के विकास तथा 1869 ई. में स्वेज " नहर के निर्माण द्वारा भारत का आन्तरिक व्यापार ही विकसित नहीं हुआ, अपितु विदेशों से भी व्यापार प्रारम्भ हुआ। भारत में नील, जूट, कपास, तम्बाकू, चाय; कॉफी आदि के नवीन उत्पादन क्षेत्रों के विकास तथा उनके विदेशों में निर्यात द्वारा भी व्यापार-वाणिज्य की काफी उन्नति हुई। कुछ व्यापारी तो अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों में जाकर बस गए। इस प्रकार मध्यम वर्ग ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में अमूल्य योगदान दिया।

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