सामूहिक सुरक्षा और शक्ति सन्तुलन में अन्तर

B.A. III, Political Science III  

प्रश्न 8. सामूहिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं ? सामूहिक सुरक्षा और शक्ति सन्तुलन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा '' सामूहिक सुरक्षा से क्या अभिप्राय है ?
इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तरसामूहिक सुरक्षा के विचार का आरम्भ 17वीं शताब्दी से माना जाता है। किन्तु सामूहिक सुरक्षा पद्धति का वास्तविक रूप 20वीं शताब्दी में हमारे सामने आया जबकि सन् 1910 में अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने कहा कि यह एक महत्त्वपूर्ण बात होगी यदि महाशक्तियाँ, जो शान्ति में विश्वास करती हैं, एक शान्ति संगठन बना लें,जिससे न केवल उनके मध्य ही शान्ति रहे वरन् किसी दूसरे राष्ट्र द्वारा उसके भंग किए जाने पर यदि आवश्यक हो, वे सामूहिक रूप से बल प्रयोग कर सकें। सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था के विचार को लोकप्रिय बनाने में प्रथम विश्व युद्धकाल में राष्ट्रपति वुडरो विल्सन की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही। राष्ट्र संघ के रूप में पहली बार सामूहिक सुरक्षा पद्धति ने संगठनात्मक रूप धारण कर लिया। सन् 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना भी सामूहिक सुरक्षा के सिद्धान्त के आधार पर की गई। चार्टर के अध्याय 7 तथा महासभा के 'शान्ति के लिए एकता प्रस्ताव' द्वार सामहिक सरक्षा पद्धति का विकास किया गया है। इसी विचार के आधार पर सोवियत संघ की साम्यवादी पार्टी के तत्कालीन महामन्त्री बेझनेव ने 'एशियाई सामूहिक सुरक्षा सिद्धान्त' का प्रतिपादन किया।

saamoohik suraksha aur shakti santulan mein antar

सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत विभिन्न राष्ट्र सामूहिक रूप से मिलकर किसी सम्भावित आक्रमण का विरोध करने के लिए कृत संकल्प हो जाते हैं। इसके पीछे यह मान्यता कार्य करती है कि उनमें से किसी राष्ट्र के ऊपर होने वाला आक्रमण सभी राष्ट्रों पर किया गया आक्रमण समझा जाएगा और सामूहिक रूप से सभी राष्ट्र संगठित होकर उस आक्रमण का मुकाबला करेंगे।

 राष्ट्रीय हित को परिभाषित कीजिए तथा राष्ट्रीय हित की अभिवृद्धि के साधनों की विवेचना कीजिए।

मॉर्गन्धाऊ के अनुसार, सामूहिक सुरक्षा को सक्रिय प्रणाली में अब व्याक्तगत राष्ट्र का समुत्थान नहा, जिसका ख्याल शस्त्री और सी . टसरे अंशों से किया जाए। सुरक्षा का सम्बन्ध सभा राष्ट्रो से हैं। वे पर का ख्याल सामूहिक रूप में करेंगे,जैसे उनका अपना ही सुरक्षा खतरे में हो '' को सरक्षा के लिए खतरा सिद्ध होता है, तो '','' तथा '''' की के विरुद्ध कदम उठाएँगे,माना कि ''ने उनको और ब को चुनौती दी हो औरोप ही उसके विपरीत भी। एक सबके लिए और सब एक के लिए सामहिक सामा मूल मन्त्र हैं।"

जॉर्ज श्वार्जनबर्गर का मत है कि एक सुप्रतिष्ठित अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के आधार पर हमले को रोकने के लिए यह विभिन्न राज्यों द्वारा सम्मिलित कार्यवाही करने का एक साधन है।"

संक्षेप में, सामूहिक सुरक्षा से आशय है..

(1) किसी एक राज्य पर किया गया आक्रमण सब राज्यों पर आक्रमण माना जाए।

(2) किसी राष्ट्र विशेष की सुरक्षा अकेले उसी राष्ट्र की चिन्ता का विषय नहीं है, बल्कि वह समस्त अन्तर्राष्ट्रीय समाज को चिन्ता का विषय है।

(3) यदि एक राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न करता है, तो खतराग्रस्त राष्ट्र की ओर से बाकी सब राष्ट्र कार्यवाही करेंगे।

(4) आक्रमणकारी के अलावा अन्य सब राष्ट्रों के बीच सहयोग सामूहिक सुरक्षा का सार तत्त्व है। सम्भव है कि इस सहयोग के डर से आक्रमणकारी आक्रमण का विचार त्याग दे।

सामूहिक सुरक्षा की मान्यताएँ

कतिपय विद्वानों; जैसे-हंस जे. मॉर्गेन्थाङ, ऑर्गेन्स्की, एम. वी. नायडू तथा आइनिस क्लॉड ने सामूहिक सरक्षा के सम्बन्ध में निम्नलिखित मान्यताआ का उल्लेख किया है

(1) सभी राष्ट्र आक्रमणकारी को पहचानते हैं।

(2) आक्रमण को रोकने में सभी की समान रुचि होती है।

(3) सभी राष्ट्रों में आक्रमण का प्रतिकार करने की क्षमता होती है।

(4) आक्रमणकारी राज्य की अपेक्षा समग्र की शक्ति अधिक होती है।

(5) विश्व-शान्ति शक्ति की अधिकता पर

(6) राष्ट्रों को पारस्परिक मतभेद भलाकर आक्रमणकारी के विरुद्ध सामूहिक कार्यवाही करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।

सामूहिक सुरक्षा की प्रकृति अथवा विशेषताएँ

सामूहिक सुरक्षा की प्रकृति अथवा विशेषताओं को निम्न शीर्षकों के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं

(1) सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था एक सार्वभौमिक सन्धि है - 

सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था एक सार्वभौमिक सन्धि है.जो अन्य प्रतियोगी सन्धियों से भिन्न है । यह कुछ संगठित राष्ट्रों के विरुद्ध सन्धि नहीं है, बल्कि प्रत्येक आक्रमणकारी राष्ट्र के विरुद्ध सन्धि है।

(2) सामूहिक सुरक्षा विश्व शान्ति की अभिवृद्धि का साधन है -

सामूहिक सुरक्षा की धारणा में गुटबन्दी की पूर्व कल्पना नहीं है,वरन् वह विश्व शान्ति के सिद्धान्त को मानकर चलती है, जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की कल्पना निहित है।

(3) सामूहिक सुरक्षा का सिद्धान्त संघर्ष को प्रतिबन्धित करने के लिए सामान्य सहयोग पर बल देता है

सामूहिक सुरक्षा सहयोग पर आधारित है। इसमें 'एक सबके लिए और सब एक के लिए के सिद्धान्त पर बल दिया जाता है।

(4) शान्ति स्थापना हेतु यह एक सामहिक प्रयास है

सामूहिक सुरक्षा का सिद्धान्त यह मानता है कि किसी एक राष्ट्र पर किया गया हमला शान्ति के लिए संकट है और इसका विरोध करने के लिए सभी राष्ट्रों को सामूहिक रूप से कटिबद्ध रहना चाहिए।

(5) सामूहिक सुरक्षा दृढ़ और संगठनबद्ध व्यवस्था है -

यह व्यवस्था कुछ मान्य सिद्धान्तों पर आधारित संगठनबद्ध तथा दृढ़ व्यवस्था है । इसके कतिपय आदर्श एवं मूल्य हैं, जो राज्य को सदैव आक्रमण का विरोध करने को प्रेरित करते हैं, क्योंकि उसका हित आक्रमण से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है।

(6) सामूहिक सुरक्षा विश्व के राष्ट्रों को पारस्परिक मतभेद भुलाकर आक्रमणकारी के विरुद्ध कदम उठाने का प्रेरित करती है

सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत विभिन्न राष्ट्र पारस्परिक मतभेद भुलाकर आक्रमणकारी के विरुद्ध सामहिक कार्यवाही करने के लिए सदेव तत्पर रहते हैं। सामूहिक सुरक्षा चाहती है कि राष्ट अपने समस्त साधन युद्ध में झोंक दें और आक्रमणकारी से अन्तिम दम तक लडें।

(7) यह व्यवस्था नकारात्मक है तथा शक्ति को नियन्त्रित करने का सावन है - 

सामहिक सुरक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत राष्ट्र आक्रमण का विरोध करने की भावना से एकत्रित होते हैं और उनका सामूहिक लक्ष्य न्याय,सरक्षा और सारहै. जिसमें बाध्यकारी शक्ति का प्रयोग सामान्य शान्ति की स्थापना जाता है।

सामूहिक सुरक्षा और शक्ति सन्तुलन में अन्तर

सामहिक सरक्षा की अवधारणा को शक्ति सन्तुलन सिद्धान्त का विकल्प माता जाता है । सामहिक सुरक्षा शक्ति के व्यवस्थापन की दृष्टि से शक्ति सन तुलना में एक अधिक केन्द्रीकृत प्रबन्ध है । इसमें शक्ति सन्तुलन की तुलना में शक्ति का अधिक नियन्त्रण होता है। सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा के जनक वडो विल्सन ने शक्ति सन्तुलन की अवधारणा का विरोध करते हुए लिखा है कि शक्ति सन्तुलन वाली विश्व व्यवस्था में राष्ट्र प्रतियोगितापूर्ण सन्धियों में बँट जाते हैं तशा बाध्यकारी शक्ति का प्रयोग राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं व स्वार्थपूर्ण लक्ष्यों को परा करने के लिए करते हैं, जबकि सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था में राष्ट्रों के सहयोग का लक्ष्य होता है-न्याय एवं सुरक्षा की व्यवस्था करना, जिसमें बाध्यकारी शक्ति का प्रयोग सामान्य शान्ति की स्थापना के लिए किया जाता है। सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था और शक्ति सन्तुलन में निम्नलिखित अन्तर हैं

(1) सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था एक सार्वभौमिक सन्धि है, जो प्रतियोगी सन्धियों से भिन्न है। यह कुछ संगठित राष्ट्रों के विरुद्ध सन्धि नहीं है, वरन् प्रत्येक आक्रमणकारी के विरुद्ध है। इसके विपरीत शक्ति सन्तुलन व्यवस्था प्रतियोगी स्वरूप वाली सन्धियों के परिणामस्वरूप स्थापित होती है।

(2) सामूहिक सुरक्षा की धारणा में गुटबन्दी की पूर्व कल्पना नहीं है, वह एक विश्व के सिद्धान्त को मानकर चलती है। इसके विपरीत शक्ति सन्तुलन की धारणा दो या दो से अधिक विरोधी गुटों के अस्तित्व को मानकर चलती है, जो परस्पर

संघर्षशील स्वभाव के हैं।

(3) सामूहिक सुरक्षा का सिद्धान्त संघर्ष को प्रतिबन्धित करने के लिए सामान्य सहयोग पर बल देता है,जबकि शक्ति सन्तुलन शान्ति व व्यवस्था के निर्माण के लिए संघर्षपूर्ण सहयोग का इच्छुक है।

(4) सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था सामान्य सहयोग के आधार पर आक्रमणकारी का विरोध करती है, जबकि शक्ति सन्तलन सिद्धान्त गटबन्दी के आधार पर आक्रमणकारी का विरोध करता है।

(5) सामूहिक सुरक्षा का सिद्धान्त यह मानता है कि किसी एक राष्ट्र पर किया गया आक्रमण शान्ति के लिए संकट है और इसका विरोध करने के लिए राष्ट्र का कटिबद्ध रहना चाहिए। इसके विपरीत शक्ति सन्तुलन व्यवस्था के अन्तर्गत बहुधा ऐसा होता है कि जिस राष्ट्र के राष्टीय हित आक्रमण से प्रभावित नहीं होते हैं वे युद्ध के पचड़े से दूर रहते हैं।

(6) सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था दृढ़ और संगठनात्मक होती है, जबकि शक्ति सन्तुलन व्यवस्था शिथिल होती है।

(7) सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था सैद्धान्तिक और आदर्शवादी है,वह राष्ट्र को सदैव आक्रमण का विरोध करने को प्रेरित करती है, क्योंकि उसका हित आक्रमण से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। इसके विपरीत शक्ति सन्तुलन व्यवस्था यथार्थवादी है तथा एक राष्ट्र को आक्रमण का विरोध करने की सलाह केवल तभी देती है जब आक्रमण उसकी स्वयं की सुरक्षा के लिए घातक हो।

(8) सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था नकारात्मक है, क्योंकि इस व्यवस्था के अन्तर्गत राष्ट्र आक्रमण का विरोध करने की भावना से एकत्रित होते हैं। इसके विपरीत शक्ति सन्तुलन व्यवस्था सकारात्मक है, क्योंकि इस व्यवस्था में राष्ट्र विचार, सिद्धान्त, मान्यताओं और समान हितों की दृष्टि से मिलकर एक होते हैं।

 

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