राष्ट्रीय हित व विदेश नीति में सम्बन्ध

B.A. III, Political Science III  

प्रश्न 7. राष्ट्रीय हित से आप क्या समझते हैं ?
अथवा '' राष्ट्रीय हित को परिभाषित कीजिए तथा राष्ट्रीय हित की अभिवृद्धि के साधनों की विवेचना कीजिए।
अथवा
'' राष्ट्रीय हित की अवधारणा का विश्लेषण कीजिए तथा राष्ट्रों के मध्य सम्बन्धों को निर्धारित करने में राष्ट्रीय हित के महत्त्व का विवेचन कीजिए।

उत्तर - अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में राष्ट्रीय हित की अवधारणा का विशिष्ट महत्त्व है। यह विदेश नीति का प्राण तत्त्व है । विदेश नीति की सफलता और असफलता का मूल्यांकन राष्ट्रीय हित के परिप्रेक्ष्य में ही किया जा सकता है। यदि विदेश नीति राष्ट्रीय हित का रक्षण करने में सफल होती है, तो उसे सफल विदेश नीति कहा जाता है और यदि वह राष्ट्रीय हितों की रक्षा नहीं कर पाती है.तो उसे असफल विदेश नीति कहा जाता है। मॉर्गेन्थाऊ के राजनीतिक दर्शन का मुख्य तत्त्व है-राष्ट्रीय हित की प्रधानता । मॉर्गेन्थाऊ ने राष्ट्रीय हित को 'शक्ति' कहकर पुकारा है।

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व-राष्ट्रीय हित एवं संघर्ष हैं । इसका महत्त्व इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि एक राष्ट्र के हित दूसरे राष्ट्रों के हित से सदैव भिन्न होते हैं। परिणामस्वरूप राष्ट्रों के मध्य संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। प्रत्येक राष्ट्र अपने हित पूरे करने से सम्बन्धित कार्य ही करता है।

राष्ट्रीय हित की अवधारणा

 'राष्ट्रीय हित' एक बड़ा लचीला और व्यापक शब्द है। अत: इसकी परिभाषा करना कठिन कार्य है । राष्ट्रीय हित की परिभाषा एक ऐसे तथ्य के रूप में की जा सकती है जिसकी रक्षा या उपलब्धि राज्य एक-दूसरे के मुकाबले में करना चाहते हैं। राष्ट्रीय हित प्रभुत्वसम्पन्न राज्य की अभिलाषाएँ हैं, जिसे वह अन्य राष्ट्रों के सन्दर्भ में प्राप्त करना चाहते हैं। अन्य राज्यों के मुकाबले में एक राज्य जो अभिलाषाएँ रखता है,वे मुख्य रूप से विदेश नीति के ध्येय होते हैं और इन ध्येयों को ही राष्ट्रीय हित के नाम से पुकारा जाता है। विदेश नीति के लक्ष्य दीर्घकालीन हित हैं, जबकि उद्देश्य केवल तात्कालिक या अल्पकालीन होते हैं।

Relations in national interest foreign policy upsc politics notes

प्रश्न 6. राष्ट्रीय शक्ति से आप क्या समझते हैं राष्ट्रीय शक्ति के निर्धारक तत्त्वों की विवेचना कीजिए। 

पैडलफोर्ड व लिंकन के अनुसार, राष्ट्रीय हित की अवधारणा समाज के मूलभूत मूल्यों से जुड़ी हुई है। ये मूल्य-राष्ट्र का कल्याण, उसके राजनीतिक विश्वासों का " संरक्षण, राष्ट्रीय जीवन-पद्धति, क्षेत्रीय अखण्डता तथा सीमाओं की सुरक्षा हैं।

चार्ल्स लर्च के अनसार, "राष्ट्रीय हित सामान्य, दीर्घकालीन और निरन्तर जारी रहने वाला प्रयोजन है, जिसकी पूर्ति के लिए कोई राष्ट्र-राज्य तथा उसकी सरकार पर्ण प्रयत्न करती है।"

वॉन डाइक के अनुसार, राष्ट्रीय हित की परिभाषा एक ऐसे तथ्य के रूप में की जा सकती है जिसकी रक्षा या उपलब्धि राज्य एक-दूसरे के मुकाबले में करना चाहते हैं।"

राष्ट्रीय हित के प्रकार

राष्ट्रीय हित दो प्रकार के होते हैं

(1) मार्मिक राष्ट्रीय हित-

मार्मिक या दीर्घकालीन राष्ट्रीय हित किसी राष्ट के लिए मूलभूत और अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। ये किसी राज्य के वे हित हैं जिन पर राज्य कोई भी रियायत देने को तैयार न हो और जिनकी रक्षा के लिए वह आवश्यकता पड़ने पर युद्ध करने को भी तैयार हो सकता है। इनमें राष्ट्रीय सुरक्षा, अखण्डता की रक्षा आदि प्रमुख हैं।

(2) अमार्मिक राष्ट्रीय हित - 

जो हित मार्मिक नहीं होते,जो तात्कालिक महत्त्व के गौण हित होते हैं और जिनके लिए कोई राज्य युद्ध का खतरा मोल नहीं लेना चाहता, उन्हें अमार्मिक एवं अस्थायी स्वरूप के राष्ट्रीय हित कहते हैं। ऐसे गौण हित जनता का भौतिक कल्याण, प्रतिष्ठा की रक्षा, विचारधारा का प्रसार, व्यापार की वृद्धि और संस्कृति का प्रसार आदि हैं।

राष्ट्रीय हित की अभिवृद्धि के साधन

राष्ट्रीय हितों को दृष्टिगत रखते हुए ही वैदेशिक सम्बन्धों का संचालन किया जाता है। व्यावहारिक दृष्टि से उसी को महत्त्व दिया जाता है जो परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार राष्ट्रीय हितों के अनुकूल हो । राष्ट्र अपने हितों को बढ़ाने के लिए अनेक साधन अपनाता है,जो निम्न प्रकार हैं

(1) कुटनीतिक साधन -  कूटनीतिक साधनों का प्रयोग करके राष्ट्र अपने हितों को बढ़ाने का हरसम्भव प्रयास करते हैं।

(2) प्रचार - प्रचार द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों को अनुकूल बनाने का प्रयास किया जाता है। अपनी राष्ट्रीय नीतियों का समर्थन प्राप्त करने के लिए भी प्रचार का सहारा लिया जाता है।

(3) राजनीतिक युद्ध - प्रत्येक राष्ट्र राजनीतिक युद्ध के माध्यम से राष्ट्रीय हितों का संवर्द्धन करना चाहता है। राष्ट्र प्रत्येक साधन अपनाकर अपने राजनीतिक लक्ष्य की प्राप्ति करता है।

(4) आर्थिक साधन - आर्थिक साधन राष्ट्रीय हित की अभिवृद्धि का महत्त्वपूर्ण साधन माना जाता है । इसके माध्यम से राष्ट्र अपने हितों की पूर्ति करता है। व्यापारिक सुविधाओं की प्राप्ति,सुरक्षा व आर्थिक समृद्धि राष्ट्रीय हित की आत्मा है।

(5) साम्राज्यवाद - राष्ट्रीय हित की अभिवद्धि का यह पुराना साधन है। दुर्बल देशों को युद्ध के माध्यम से अपने साम्राज्य में मिलाना तथा वहाँ से हितों की अभिवृद्धि का प्रयास किया जाना । इस प्रकार साम्राज्यवाद को साधन के रूप में अपनाया जाता है।

(6) उपनिवेशवाद - शक्तिशाली राष्ट्रों ने उपनिवेशवाद को राष्ट्रीय हित की अभिवृद्धि के लिए अपनाया। वह देश जहाँ कच्चा माल, तेल, प्राकृतिक संसाधन बहुतायत मात्रा में हों, उस देश को उपनिवेश बनाकर उसके कच्चे माल का उपयोग राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए किया जाता है।

इस प्रकार राष्ट्र राष्ट्रीय हितों की अभिवृद्धि के लिए अनेक प्रकार के साधन अपनाते हैं और अपनी विदेश नीति का संचालन उसी आधार पर करते हैं।

विदेश नीति और राष्ट्रीय हित
अथवा
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में राष्ट्रीय हित का महत्त्व

यह एक विवादास्पद प्रश्न है कि क्या राष्ट्रीय हित विदेश नीति का उद्देश्य है अथवा मूल्य । जो विद्वान् राष्ट्रीय हित को उद्देश्य मानते हैं,उनके अनुसार यह स्थायी. अपरिवर्तित तथा शक्ति से जुड़ी हुई अवधारणा है । जो विचारक इसे मूल्यपरक अवधारणा मानते हैं, उनके अनुसार यह शक्ति के अतिरिक्त मूल्यों से जुड़ी हुई अवधारणा है । पैडलफोर्ड व लिंकन के अनुसार राष्ट्रीय हित की अवधारणा समाज के मूलभूत मूल्यों से जुड़ी हुई है। इन मूल्यों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-राष्ट्र का कल्याण, उसके राजनीतिक विश्वासों का संरक्षण, राष्ट्रीय जीवन-पद्धति, क्षेत्रीय अखण्डता तथा सीमाओं की सुरक्षा । जोसेफ फ्रेंकेल ने अपनी पुस्तक 'National Interest' में राष्ट्रीय हित की व्याख्या राष्ट्र की आकांक्षाओं, विदेश नीति के क्रियात्मक-व्याख्यात्मक तथा विवादों का निरूपण करने वाले तत्त्व के रूप में की है।  वास्तव में राष्ट्रीय हित की अवधारणा विदेश नीति का मूलभूत सिद्धान्त है। विदेश नीति-निर्माण का प्रारम्भिक बिन्दु राष्ट्रीय हित है। जब तक दुनिया राजनीतिक दृष्टि से राज्यों में विभाजित रहेगी. तब तक विश्व राजनीति में राष्ट्रीय हित महत्त्वपूर्ण विषय रहेगा । वास्तव में राष्ट्रीय हित अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की कुंजी है। चाहे किसी राष्ट्र के कितने ही ऊँचे आदर्श हों और कितनी ही उदार अभिलाषाएँ हों, वह अपनी

विदेश नीति को राष्ट्रीय हित के अतिरिक्त किसी अन्य धारणा पर आधारित नही सकता। मॉर्गेन्थाऊ की मान्यता है कि राष्ट्रीय हित ही विदेश नीति की आत्मा है। विदेश नीति का सार है.यही उसकी प्रेरणा और आधारशिला है।

विदेश नीति का संचालन राष्ट्रीय हितों की दृष्टि से किया जाता है। सिद्धान्तवात की दहाई दी जाती है. लेकिन व्यवहार में किया वही जाता है जो आवश्यकता और परिस्थिति के अनुसार राष्ट्रीय हितों के अनुकूल हो। निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो राष्ट्रीय हितों के अनुकूल वैदेशिक नीति का संचालन प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है और राष्ट्र अधिकांशतः अपने हितों की कीमत पर सिद्धान्तों की रक्षा में अडिग नहीं रहे हैं। सैद्धान्तिक दृष्टिकोण आज के अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक क्षितिज में आन्तरिक विरोधाभासों के फलस्वरूप अपना प्रभाव खोता जा रहा है और वह राज्यों की नीतियों और उद्देश्यों और लक्ष्यों की निरन्तरताओं का वर्णन करने में असफल रहा है। युद्धोत्तर काल के प्रारम्भ में इंग्लैण्ड की श्रमिक सरकार ने देश में सारभूत रूप से उन्ही के संरक्षण की नीति अपनाई, जिनकी सुरक्षा को टोरियों और ह्विगों ने आवश्यक माना था। इसी प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका की विदेश नीति ने देश के उन्हीं केन्द्रीय लक्ष्यों पर ध्यान दिया जिन पर रूजवेल्ट प्रशासन ने ध्यान दिया। अमेरिकी व्यावसायिक और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए निक्सन व कीसिंगर ने चीन से दोस्ती का हाथ बढ़ाया। कहने का तात्पर्य है कि चाहे प्रविधिया, उपाय और साधन बदल जाए,लेकिन एक देशक हित और उद्देश्य सापेक्षिक रूप से निरन्तर बने रहते हैं और इसलिए विदेश नीति राष्ट्रीय हितों के अनुकूल ही संचालित होती है। समय और परिस्थिति के अनुसार राष्ट्रीय हित की जो माँग है,उसी के अनुरूप विदेश नीति का संचालन किया जाता है।

यह सच है कि प्रत्येक राज्य के राष्ट्रीय हित उसकी परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के आधार पर बदलते रहते हैं.पर कम-से-कम तीन बातें ऐसी हैं जिन्हें प्रत्येक राज्य को अपनी विदेश नीति में आवश्यक रूप से ध्यान देना चाहिए।

वे हैं-(1) आत्म-रक्षा,

(2) सुरक्षा, और

(3) लोक-कल्याण ।

किसी भी राज्य की विदेश नीति शून्य में स्थापित नहीं होती है अर्थात् हितों के सन्दर्भ में ही विदेश नीति का अध्ययन किया जाता है,राष्ट्रीय हित के अभाव में विदेश नीति का कोई मूल्य नहीं है। अतः विदेश नीति का महत्त्व राष्ट्रीय हितों में ही निहित है। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि विदेश नीति साधन तथा राष्ट्रीय हित साध्य है।

विदेश नीति का निर्धारण करने वाले प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं-

(1) भौगोलिक तत्व,
(2) राजनीतिक तत्त्व,
(3) ऐतिहासिक तत्त्व
(4) आर्थिक तत्त्व
(5) वैचारिक तत्व,
(6) सैनिक तत्त्व, और
(7) अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ।

इन सभी तत्त्वों के आधार पर ही विदेश नीति का निर्धारण एवं संचालन होता है। मॉर्गेन्थाऊ के अनुसार, “कोई भी राष्ट्र चाहे कितना ही शक्तिशाली हो, किसी भी विचारधारा का पोषक हो, वह अपनी विदेश नीति राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्धारित करता है। जो राष्ट्र इस तथ्य को ध्यान में नहीं रखता, उसका अस्तित्व कभी भी स्थायी नहीं हो सकता।"

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि राष्ट्रीय हितविदेश नीति में घनिष्ठ सम्बन्ध है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रत्येक राष्ट्र अपनी विदेश नीति में राष्ट्रीय हितों की वृद्धि को एक आवश्यक अंग मानता है।

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