अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन में खेल सिद्धान्त
B.A. III, Political Science III
प्रश्न 4. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में क्रीड़ा सिद्धान्त के प्रयोग
का विवेचन कीजिए। "इसकी सीमाएँ क्या हैं ?
अथवा '' अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन में खेल सिद्धान्त की
विवेचना कीजिए।
उत्तर - खेल का सिद्धान्त मुख्यतः गणितज्ञों और अर्थशास्त्रियों ने विकसित किया है। इस दृष्टिकोण में प्रतिमान निर्माण की कला को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर लागू करने का प्रयत्न किया गया है। इसमें अनेक समानताओं के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को एक खेल मान लिया जाता है और उसके अध्ययन के लिए खेल जैसा एक प्रतिरूप या नमूना बनाकर अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। इसमें गणितीय प्रतिमान को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर लागू करने का विशेष प्रयत्न दिखाई देता है ।
खेल सिद्धान्त के महत्त्व को प्रतिपादित करने
वालों में मार्टिन शुबिक, कार्ल डायच तथा ऑस्कर मॉर्गेन्स्टर्न के नाम उल्लेखनीय हैं।
जर्मन गणितज्ञ लीबनिट्ज ने 1710 ई. में इसकी आवश्यकता तथा महत्त्व को समझ लिया था। लेकिन
इसके व्यापक प्रयोग का श्रेय जॉन न्यूमैन को है। उन्होंने इसका प्रयोग अर्थशास्त्र
में किया। इस सिद्धान्त का विकास टॉमस शेलिंग द्वारा किया गया। अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति में मार्टन कैप्लन, आर्थर ली बर्स तथा रिचर्ड क्वाण्ट ने खेल सिद्धान्तों के
प्रतिमानों को अपनाने का प्रयत्न किया है। इन विचारकों ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति
को समझने के लिए खेलों का माध्यम अपनाया है।
वस्तुतः खेल उपागम विश्लेषण का एक तरीका है और इसमें कई विकल्पों में से श्रेष्ठ विकल्प का चयन करना होता है। यह सिद्धान्त इस प्रश्न का उत्तर है कि किन परिस्थितियों में कौन-सी क्रिया (निर्णय) अथवा विकल्प विवेकसंगत होता है ? यह सिद्धान्त उन लोगों के लिए बहत उपयोगी है जो एक विशेष समस्या पर निर्णय लेना चाहते हैं अथवा जो अपने विकल्प की तुलनात्मक रूप से उपयोगिता देखना चाहते हैं । इस सिद्धान्त में यह मान लिया जाता है कि जिस प्रकार शतरंज आदि खेलों में दो या अनेक प्रतिद्वन्द्वी एक-दूसरे को हराने के लिए विभिन्न प्रकार की चालें चलते हैं, उसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में विभिन्न राज्य विभिन्न प्रकार की चाल चलकर अपने विरोधियों को परास्त करने का प्रयत्न करते हैं। दोनों में कई समानताएँ उल्लेखनीय है।
पहली समानता संघर्ष की स्थिति की है। इसमें दोनों जीतने का पूरा प्रयत्न करते हैं। दूसरी समानता उद्देश्य की है। दोनों पक्षों का एकमात्र उद्देश्य संघर्ष में सफलता प्राप्त करने का होता है । जिस प्रकार शतरंज का खिलाड़ी अपने विरोधी को मात देने का प्रयास करता है, उसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रत्येक राज्य अपने प्रतिद्वन्द्वी के साथ अधिक शक्ति पाने के संघर्ष में विजयी होना चाहता है। तीसरी समानता, साधनों की है। शतरंज आदि खेलों का खिलाड़ी अपने विरोधी की चालों का सूक्ष्मतापूर्वक अध्ययन करता है,उसकी सम्भावित चालों से बचने के लिए और उनकी काट करने के लिए अपनी सुविचारित चालें चलता है, जिससे वह खेल में विजय प्राप्त कर सके। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में भी यही स्थिति होती है। प्रत्येक देश अपने विरोधी की सम्भावित चालों को पूरी तरह समझने का प्रयास विभिन्न साधनों से करता है और उन्हें विफल करने के लिए अपनी ऐसी नई चालें चलता है जिससे उसकी स्थिति सुदृढ़ हो, अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में उसके प्रभाव में वृद्धि हो और वह शत्रु द्वारा उसे हानि पहुँचाने के उद्देश्य से किए गए प्रयासों का सफल प्रतिरोध कर सके।
खेल सिद्धान्त में जिस खेल की चर्चा की गई है वह युक्ति का खेल है,
न कि संयोग का खेल । एक खेल की भाँति इस सिद्धान्त में भी
स्वयं के नियम, खिलाड़ी
क्रियाओं,
रणनीति तथा क्षतिपूर्ति आदि होते हैं। यह खेल
प्रतिस्पर्धापूर्ण तथा सहकारितापूर्ण, दोनों ही प्रकार का हो सकता है। खेल के सैद्धान्तिक
विश्लेषण की इकाई खिलाड़ी होता है । खिलाड़ी का अर्थ उससे है जो निर्णय लेता है।
खिलाड़ी दो भी हो सकते और उससे अधिक भी। खेल के अपने नियम होते हैं। इन नियमों पर
खिलाड़ियों का वश नहीं रहता। जैसे शतरंज का नियम है कि पैदल मोहरा एक बार में एक
या दो घर पार कर सकता है। खेल के नियम ही यह निर्णय करते हैं कि खिलाड़ी क्या कदम
उठाएगा। खेल में हर पात्र इस कोशिश में लगा रहता है कि वह अपने लिए अधिकतम लाभ
अर्जित करे।
खेल सिद्धान्त के सम्प्रत्यय
खेल सिद्धान्त मुख्य रूप से पाँच सम्प्रत्ययों (Concepts) पर बल देता है
(1)
रणनीति तय करना अर्थात् दूसरे पक्ष की चालों को देखकर अपने
लिए चातुर्यपूर्ण चाल निर्धारित कर लेना।
(2) विरोधी का होना अर्थात् खेल सिद्धान्त में विरोधी का होना आवश्यक है।
(3) क्षतिपूर्ति का होना अर्थात् खेल के अन्त में क्या मूल्य
प्राप्त होगा।
(4) नियमों का होना अर्थात् खेल के लिए कतिपय आधारभूत नियम होने
चाहिए।
(5) सूचना का होना अर्थात् खेल में सभी विकल्पों की जानकारी
खिलाड़ी के पास होनी चाहिए।
खेलों के प्रकार
खेल कई प्रकार के होते हैं; जैसे
(1) जीरो-सम गेम्स (Zero-Sum Games)—इसमें कुल खिलाड़ियों की हानियों का अर्थ दूसरे खिलाड़ियों
का लाभ होता है।
(2) कॉन्सटेण्ट-सम गेम्स (Constant-Sum
Games)- ये इस प्रकार के
खेल हैं जिनमें किसी भी पक्ष को किसी दूसरे की कीमत पर लाभ नहीं मिलता।
(3) नॉन-जीरो गेम्स (Non-Zero Games)
-इस प्रकार का खेल उपर्युक्त
दोनों प्रकार के खेलों के बीच की स्थिति का द्योतक है। इसमें खेल के विभिन्न
पक्षों के बीच प्रतिस्पर्धा भी रह सकती है और सहयोग भी।
खेल सिद्धान्त और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन
खेल सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को एक क्रीड़ास्थली मानता है,जहाँ राष्ट्र और राज्य अपनी व्यूह-रचना कर रहे हैं। जिस
प्रकार सामाजिक संगठन सहयोग के प्रतीक हैं, उसी प्रकार सामाजिक संघर्ष भी होते रहते हैं। संघर्ष जब
अन्तिम सीमा तक पहुँच जाता है, तो युद्ध होते हैं। परन्तु मनुष्य की इस प्रवृत्ति को
रचनात्मक ढंग से भी नियमित किया जा सकता है और उसका मुख्य उदाहरण है खेल का मैदान,जहाँ दो स्पष्ट दल होते हैं,प्रतिद्वन्द्विता होती है और प्रत्येक दल केवल अपनी विजय
चाहता है,
अपने विरोधी को पराजित करना चाहता है।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के खेल सिद्धान्त में विश्वास करने वाले लोग
खेल का एक मॉडल बनाते हैं और इस मॉडल को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन पर
लागू करते हैं। इस मॉडल में शक्ति निर्णय विवाद तथा सहयोग प्रमुखतम अवधारणाएँ हैं।
इस मॉडल में राष्ट्रों को राष्ट्रीय हित की पूर्ति के लिए प्रतियोगिता कर रहे
खिलाड़ियों के समान समझा जाता है। जिस प्रकार खेल प्रतियोगिताओं के नियम बिल्कुल
स्पष्ट और पूर्व निश्चित होते हैं और एक निर्णायक बिल्कुल तटस्थ होकर दोनों पक्षों
को खिलाता रहता है और नियमों का पालन करवाता है, उसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी स्पष्ट नियम
होते हैं,
जिन्हें हम मानव स्वभाव के प्राकृतिक नियमों की संज्ञा देते
हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ एक रेफरी की भाँति देखता रहता है कि राष्ट्र
अन्तर्राष्ट्रीय नियमों का पालन करते हुए परस्पर खेल की भाँति क्रिया करते रहें।
खेल सिद्धान्त वास्तव में तर्कसंगत व्यवहार का मॉडल पेश करता है। खेल सिद्धान्त इस
प्रकार का उत्तर देने का प्रयत्न करता है कि किस स्थिति में कौन-सी कार्यवाही तर्कसंगत
है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में तर्कसंगत व्यवहार का अर्थ यह है कि प्रत्येक
राष्ट्र विदेश नीति के क्षेत्र में ऐसा निर्णय ले जिससे विजय के अधिकतम अवसर हासिल
हों । रिचर्ड स्नाइडर ने फारमोसा के बारे में लिखा है कि यदि 'टू पर्सन जीरो सम गेम का मॉडल अपनाया जाता,तो राज्य सचिव डलेस को उसकी सुरक्षा के लिए इतना आगे बढ़
जाना चाहिए था कि बाद में चीन उन निर्णयों को बदलने में सामर्थ्यवान नहीं रह जाता
। चूँकि 'नॉन-जीरो सम गेम' में दोनों ही कर्ताओं (अमेरिका या चीन) के हानि उठाने के
अवसर बने रहते हैं। यदि अन्त में खेल का मूल्य 'युद्ध' रह जाता है, तो वह और भी खतरनाक बन जाता है। यदि फारमोसा की व्याख्या 'कॉन्सटेण्ट-सम् गेम्स' की परिप्रेक्ष्य में की जाए, तो दोनों को ही समान लाभ होंगे।
सामान्यतया खेल सिद्धान्त के समर्थक अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति में किसी संघर्ष के समय मुख्य रूप से पाँच प्रश्न पूछते हैं
(1) आपके पास कौन-कौन सी युक्तियाँ (Strategies)
हैं ?
(2) आपके विरोधी अथवा शत्रु के पास कौन-कौन सी युक्तियाँ हैं ?
(3) दोनों की युक्तियों की तुलना करने पर क्या परिणाम निकलते हैं ?
(4) विभिन्न परिणामों के आप क्या मूल्य आँकते हैं ?
(5) ऐसे ही विभिन्न परिणामों के आपके विरोधी या शत्रु क्या मूल्य आँकते हैं?
इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए नीति निर्माताओं को अपनी नीतियों के
परिणामों तथा सम्भावित अनुमानों के बारे में बड़े स्पष्ट निष्कर्ष निकालने पड़ेंगे,तभी निर्धारित अनुमानों का प्रकटीकरण और पूर्व गणना सम्भव
होगी।
विगत कछ वर्षों से मार्क्सवादी विचारकों ने खेल सिद्धान्त का प्रयोग भिन्न
प्रकार से किया है। वस्तुतः अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का अध्ययन करने के लिए वे
विभिन्न प्रकार के साधनों एवं प्रक्रियाओं को काम में लाते हैं। पिछले दिनों
अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष का अध्ययन करने के लिए विशेष तौर से जिस पद्धति को काम में
लाया जाने लगा है,उसे स्वरूपीकरण (Formalisation)
के नाम से पुकारा जाता है। स्वरूपीकरण से तात्पर्य है कि
विभिन्न प्रक्रियाओं में ऐसी प्रक्रियाओं के स्वरूप को छाँट लेना जो समान हैं तथा
इन स्वरूपों को कालान्तर में निहित तत्त्वों के आधार पर सामान्यीकृत करना ।
अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों के अध्ययन में इस पद्धति का प्रयोग बड़ा सरल है।
अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों के निश्चित स्वरूप होते हैं;
जैसे-विरोध, तनाव, झड़प, दौत्य सम्बन्धों को तोड़ना, आर्थिक नाकेबन्दी, युद्ध आदि । इन स्वरूपों के विश्लेषण से हमारे लिए यह सम्भव
हो सकता है कि हम संघर्ष की प्रत्येक सतह में निहित खतरे का आकलन कर लें।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के खेल सिद्धान्त की आलोचना
अथवा
खेल सिद्धान्त की सीमाएँ
खेल सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन का सामान्य सिद्धान्त नहीं
बन पाया है। इस सिद्धान्त की अपनी कुछ समस्याएँ हैं, जिसके कारण इसे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर लागू नहीं किया
जा सकता। अनेक विद्वान् इसे वैज्ञानिक कहने को तैयार नहीं हैं। इस सिद्धान्त की
निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जाती है
(1) खेल सिद्धान्त के परिप्रेक्ष्य में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति
का विश्लेषण करने पर एक प्रकार की बिल्कुल नई शब्दावली का विकास करना पड़ेगा।
(2) अन्तर्राष्ट्रीय क्रीड़ा मंच पर इतने अधिक खिलाड़ी हैं कि
सबके अलग-अलग समूहों की कल्पना, उनके सम्बन्ध आदि का विश्लेषण कर पाना कि वे इस क्रीड़ा
स्थल पर कैसा आचरण करेंगे,वास्तव में बहुत कठिन है।
(3) खेल सिद्धान्त में मानव स्वभाव के उस पक्ष पर ही ध्यान
केन्द्रित किया गया. है जो विरोध,प्रतिद्वन्द्विता तथा प्रतिस्पर्धा से सम्बन्धित है।
(4) खेल सिद्धान्त की एक कमजोरी यह है कि इसे टू पर्सन्स
जीरो-सम गेम्स व्यक्तीय शून्य योग खेलों के मामलों पर ही कुछ सफलता से लागू किया
जा सकता है, पर
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में ऐसी स्थितियाँ बहुत कम ही होती हैं। अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति में अक्सर सविकल्प खेल होते हैं।
(5) खेल सिद्धान्त के सम्बन्ध में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि
जीरो-सम (शून्य योग) स्थितियों के विश्लेषण का अन्तर्राष्ट्रीय जीवन की वास्तविकता
से कोई समुचित मेल नहीं बैठता है । जीरो सम स्थिति के प्रतिमान के आधार पर केवल
युद्ध की स्थिति का ही विश्लेषण किया जा सकता है, जबकि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की विषय-वस्तु में अध्ययन का
मुख्य हेतु मात्र युद्ध ही नहीं है। युद्ध के अतिरिक्त सहयोग और सामंजस्य के
तत्त्व भी अत्यन्त प्रबल हैं और आज के इस अणु युग में कोई भी राज्य युद्ध नहीं
चाहता,
अतः इस सिद्धान्त का महत्त्व भी कम होता जा रहा है।
(6) खेल सिद्धान्त अमूर्त धारणा है और कतिपय विशिष्ट
परिस्थितियों में ही इस धारणा को लागू किया जा सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति
के खिलाड़ी उतने विवेकशून्य नहीं होते जितना कि इस सिद्धान्त के समर्थकों ने सोचा
है । मार्टन कैप्लन के शब्दों में, "यह सिद्धान्त सीमित परिस्थितियों में ही अन्तर्राष्ट्रीय
राजनीति की समस्याओं के बारे में लागू किया जा सकता है।”
इसका कारण बताते हुए कार्ल डायच ने लिखा है,
“खेल सिद्धान्त की सामान्य धारणा
है कि अधिकांश खेलों का अन्त हो जाता है, जबकि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति ऐसा खेल है जो कभी खत्म नहीं
होता और कोई भी महाशक्ति दूसरे का समूलोन्मूलन करके खेल के मैदान में नहीं हार
सकती।"
वस्तुतः खेल सिद्धान्त का क्षेत्र अत्यन्त सीमित है । इसे द्विव्यक्तीय शून्य
योग खेलों के बारे में कुछ सफलता के साथ ही लागू किया जा सकता है,जहाँ भाग लेने वाले केवल दो राष्ट्र हों । लेकिन
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में ऐसी परिस्थितियाँ बहुत कम ही होती हैं।
खेल सिद्धान्त का महत्त्व
खेल सिद्धान्त के समर्थक निम्न आधारों पर इसका समर्थन करते हैं
(1)
यह सिद्धान्त अनुभवे पर आधारित है और इसमें थोड़ी-सी
भविष्यवाणी करने की क्षमता है।
(2) विश्व युद्ध के बाद की द्विध्रुवीय विश्व राजनीति को खेल
सिद्धान्त के आधार पर अच्छी तरह समझा जा सकता है। इस खेल में तीन खिलाड़ी
है-पूँजीवादी शक्तियाँ, साम्यवादी शक्तियाँ और गुटनिरपेक्ष शक्तियाँ। इनसे
सम्बन्धित अन्तःक्रियाओं और खेल का अध्ययन करके खेल का एक सैद्धान्तिक मॉडल बनाया
जा सकता है।
(3) खेल सिद्धान्त का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में ऐसे
तर्कसंगत व्यवहार का निर्णय करना है जो विदेश नीति-निर्माण में निर्णयों और
कार्यवाहियों का मार्ग प्रशस्त कर सके।
Very helpful
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