अमेरिका के संविधान की 16 विशेषताएँ

B.A. II, Political Science II

प्रश्न 6. संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

अथवा '' अमेरिका के संविधान की विशेषताएँ बताइए। अमेरिका के संविधान में संशोधन किस प्रकार होता है?

उत्तर - अमेरिका का संविधान विश्व का प्रथम लिखित संविधान है। यह अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का जन्मदाता है। इस संविधान की महत्ता के बारे में ग्लैडस्टोन ने लिखा है, “अमेरिकी संविधान मानव जाति की आवश्यकता तथा मस्तिष्क से उत्पन्न किसी निश्चित समय की सर्वाधिक आश्चर्यपूर्ण कृति है।"

अमेरिका के संविधान की विशेषताएँ अमेरिका के संविधान की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं

(1) निर्मित संविधान-

अमेरिका का संविधान एक निश्चित योजना द्वारा एक निश्चित समय में निर्मित हुआ है। 1787 ई. के फिलाडेल्फिया सम्मेलन में इसका निर्माण किया गया और 1789 ई. से यह लागू हो गया।

(2) लिखित संविधान-

अमेरिका का संविधान विश्व का प्रथम लिखित संविधान है। संविधान का मूल ढाँचा एवं अधिकांश धाराएँ लिखित हैं। शासन के सिद्धान्त, शासकीय अंगों का कार्यक्षेत्र एवं उनके कार्य तथा नागरिकों के अधिकार आदि सभी बातें लिखित रूप में हैं। ब्राइस के अनुसार, "अमेरिका का संविधान विश्व के लिखित संविधानों में सर्वोच्च है।

अमेरिका के संविधान की 16 विशेषताएँ

(3) विश्व का सर्वाधिक संक्षिप्त संविधान

विश्व के लिखित संविधानों में अमेरिका का संविधान सबसे अधिक संक्षिप्त है। इसमें कुल 7 अनुच्छेद हैं, जबकि कनाडा के संविधान में 147 अनुच्छेद, ऑस्ट्रेलिया के संविधान में 128 अनुच्छेद तथा भारत के संविधान में 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियाँ हैं। मुनरो ने लिखा है,“संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में केवल 4,000 शब्द हैं,जो 10 या 12 पृष्ठों में मुद्रित हैं और जिन्हें आधे घण्टे में पढ़ा जा सकता है।" अमेरिका के संविधान में केवल मूलभूत तथा महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख है, शेष बातें विवेक पर छोड़ दी गई हैं।

(4) कठोर संविधान-

अमेरिका का संविधान एक कठोर संविधान है, क्योंकि अन्य संविधानों के विपरीत अमेरिकी संविधान में साधारण कानूनों और संवैधानिक संशोधनों की प्रक्रिया भिन्न है। यह संविधान की कठोरताः का ही परिणाम है कि अब तक इसमें (अमेरिकी संविधान में) केवल 27 संशोधन ही हुए हैं।

(5) संविधान की सर्वोच्चता

संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है। संघ तथा इसकी इकाइयाँ इसके विरुद्ध आचरण नहीं कर सकतीं। राष्ट्रपति,कांग्रेस तथा उच्चतम न्यायालय,सभी इसके अधीन हैं और इसका उल्लंघन नहीं कर सकते।

(6) लोकप्रिय सम्प्रभुता पर आधारित-

अमेरिका के संविधान का निर्माण जनप्रतिनिधियों ने मिलकर किया है। अतएव संविधान के द्वारा अन्तिम सत्ता जनता को ही प्रदान की गई है। 

संविधान की प्रस्तावना में लिखा है-"हम संयुक्त राज्य अमेरिका के लोग अधिक शक्तिशाली संघ बनाने, न्याय की स्थापना, आन्तरिक शान्ति की प्राप्ति, सामान्य प्रतिरक्षा की व्यवस्था और सार्वजनिक कल्याण में बढ़ोत्तरी करने तथा अपने और अपनी सन्तान हेतु स्वतन्त्रता के वरदान को सुरक्षित रखने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के इस संविधान को अपनाते हैं।" 

अमेरिका का संविधान पूर्णरूपेण जनतन्त्रीय है और राज्य की अन्तिम शक्ति जनता के हाथों में केन्द्रित है।

(7) गणतन्त्रात्मक शासन-

अमेरिकी संविधान द्वारा देश में गणतन्त्रात्मक शासन प्रणाली की स्थापना की गई है। इसका तात्पर्य यह है कि राज्याध्यक्ष एवं शासनाध्यक्ष राष्ट्रपति ब्रिटेन की भाँति वंशानुगत न होकर जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों द्वारा निर्वाचित होता है। राज्यों के गवर्नर भी जनता द्वारा चुने जाते हैं।

(8) संघात्मक शासन व्यवस्था

अमेरिकी संविधान द्वारा देश में एक संघ की स्थापना की गई है। राष्ट्रीय महत्त्व के विषय संघ या केन्द्र के पास हैं और शेष | विषय राज्यों के अधीन हैं। संविधान की सर्वोच्चता, संविधान का लिखित एवं कठोर स्वरूप, संघ एवं राज्यों के मध्य शक्तियों का स्पष्ट संवैधानिक विभाजन, शक्तिशाली संघीय न्यायपालिका आदि संघीय व्यवस्था की समस्त विशेषताएँ अमेरिकी संविधान में मौजूद हैं।

(9) अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली

संयुक्त राज्य अमेरिका में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को अपनाया गया है। वहाँ की कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान | राष्ट्रपति जनता द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से 4 वर्ष के लिए निर्वाचित होता है । वह तथा उसके मन्त्रिमण्डल न तो कांग्रेस के सदस्य होते हैं और न ही वे अपने कार्यों के लिए कांग्रेस के प्रति उत्तरदायी होते हैं और न ही कांग्रेस का उन पर नियन्त्रण होता है। कांग्रेस भी राष्ट्रपति के नियन्त्रण से मुक्त है।

(10) शक्तियों का पृथक्करण-

मॉण्टेस्क्यू द्वारा प्रतिपादित शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त अमेरिकी संविधान का मूलभूत संवैधानिक सिद्धान्त है।। मॉण्टेस्क्यू के विचारानुसार नागरिकों की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए सरकार की | तीनों शक्तियाँ-विधायिनी, न्यायिक तथा कार्यपालिका-किसी एक व्यक्ति या संस्था के हाथों में केन्द्रित न होकर एक-दूसरे से पृथक् एवं स्वतन्त्र होनी चाहिए। इसीलिए अमेरिकी संविधान में व्यवस्थापन सम्बन्धी शक्तियाँ कांग्रेस में, कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियाँ राष्ट्रपति में तथा न्यायिक शक्तियाँ सवोच्च न्यायालय में निहित की गई हैं।

(11) अवरोध एवं सन्तुलन का सिद्धान्त-

अमेरिकी संविधान निर्माता इस तथ्य से पूर्णतया परिचित थे कि व्यवहारतः शासन के तीनों अंग असम्बद्ध नहीं रह सकते। अतएव उन्होंने शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के साथ-साथ अवरोध एवं | सन्तुलन के सिद्धान्त की भी व्यवस्था की, ताकि सरकार का कोई भी अंग अनियन्त्रित एवं निरंकुश होकर लोकहित एवं नागरिक स्वतन्त्रताओं की उपेक्षा न कर सके । उदाहरण के लिए, कांग्रेस द्वारा निर्मित कानूनों पर राष्ट्रपति की स्वीकृति और राष्ट्रपति की 'वीटो' शक्ति नियन्त्रण रखती है। 

प्रशासकीय उच्च अधिकारियों की नियुक्ति तथा युद्ध एवं सन्धि के मामलों में राष्ट्रपति को कांग्रेस की स्वीकति लेनी पड़ती है। यद्यपि न्यायपालिका को स्वतन्त्र बनाया गया है, परन्तु न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को प्रदान कर न्यायपालिका पर नियन्त्रण रखने का प्रयास किया गया है। इस व्यवस्था के सम्बन्ध में ऑगरे ने लिखा है"अमेरिकी संविधान का कोई लक्षण इतना प्रमुख नहीं है जितना नियन्त्रण और सन्तुलन की धारणा के साथ अपनाया गया शक्ति विभाजन सिद्धान्त।"

(12) न्यायपालिका की सर्वोच्चता व न्यायिक पुनर्विलोकन की व्यवस्था

संयुक्त राज्य अमेरिका में संघात्मक शासन प्रणाली अपनाए जाने के कारण वहाँ न्यायिक सर्वोच्चता के सिद्धान्त को अपनाया गया है। संविधान का अतिक्रमण करने वाले राष्ट्रपति के आदेशों, कांग्रेस द्वारा पारित अधिनियमों अथवा राज्य सरकारों के कार्यों का पुनर्निरीक्षण कर सर्वोच्च न्यायालय उन्हें अवैध घोषित कर सकता है। इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय को शासकीय आदेशों एवं विधियों की संवैधानिकता की जाँच करने व उनका न्यायिक पुनर्विलोकन का अधिकार प्राप्त है। जेम्स बीक ने अमेरिकी न्यायपालिका की इस शक्ति को 'संविधान का सन्तुलन चक्र' कहा है।

(13) मौलिक अधिकारों की व्यवस्था-

नागरिक स्वतन्त्रताओं की रक्षा के लिए तथा जनता को शासन की निरंकुशता से बचाने के लिए अमेरिकी संविधान, में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है। यद्यपि फिलाडेल्फिया सम्मेलन में संविधान का जो प्रारूप प्रस्तुत हुआ था, उसमें मौलिक अधिकारों की व्यवस्था नहीं की गई थी। लेकिन बाद में जब कई राज्यों ने संविधान के इस प्रारूप को स्वीकार नहीं किया, तो संविधान में 10 संशोधन किए गए और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का प्रावधान किया गया। इन अधिकारों में धार्मिक स्वतन्त्रता, भाषण तथा प्रेस की स्वतन्त्रता, अकारण बन्दीकरण से स्वतन्त्रता, व्यवसाय की स्वतन्त्रता, संघ या समुदाय बनाने की स्वतन्त्रता आदि प्रमुख हैं।

(14) दोहरी नागरिकता का प्रावधान-

संयुक्त राज्य अमेरिका में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था को अपनाया गया है। प्रत्येक नागरिक को संघ के |साथ-साथ तथा अपने निवास के राज्य की भी नागरिकता प्राप्त है। संविधान के 14वें संशोधन में कहा गया है कि "वे सभी व्यक्ति, जो संयुक्त राज्य में जन्मे हैं या उन्होंने बाद में नागरिकता के अधिकार प्राप्त किए हैं और संयुक्त राज्य के क्षेत्र में रहते हैं, उसके भी नागरिक हैं।"

(15) निहित शक्तियों का सिद्धान्त-

अमेरिका के संविधान की एक विशेषता यह भी है कि संविधान निर्माताओं ने संविधान में अनेक महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख नहीं किया है, परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने समय-समय पर बारीकी से संविधान की व्याख्या की और संविधान में वर्णित बातों से अर्थ निकालकर विभिन्न शक्तियाँ केन्द्र व राज्य सरकारों को प्रदान की। इसी को 'निहित शक्तियों का सिद्धान्त' कहते हैं।

(16) लूट प्रथा-

लूट की प्रथा अमेरिकी संविधान की एक प्रमुख विशेषता है। इसका तात्पर्य यह है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति पहले के कर्मचारियों तथा उच्च पदाधिकारियों को हटाकर अपने दल के समर्थकों को तथा अपनी रुचि के व्यक्तियों को महत्त्वपूर्ण शासकीय पदों पर नियुक्त करता है।

अमेरिकी संविधान के सम्बन्ध में मुनरो ने लिखा है कि यह संविधान 1787 ई. का तिथि चिह्न रखते हुए भी अपने को शनै-शनैः परिवर्तित, विकसित, विस्तृत और नवीन परिस्थितियों के अनुकूल बनाता रहा है।"

अमेरिकी संविधान में संशोधन की पद्धति

अमेरिकी संविधान विश्व के अन्य संविधानों की तुलना में कठोर है। अब तक इसमें केवल 27 संशोधन ही हुए हैं। संविधान के अनुच्छेद 5 में संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख है।

संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) संशोधन प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाना, और

(2) प्रस्ताव का अनुसमर्थन।

(1) संशोधन का प्रस्ताव

संविधान में संशोधन का प्रस्ताव निम्न दो विधियों में से किसी एक विधि से रखा जा सकता है

(i) कांग्रेस संशोधन का प्रस्ताव स्वयं रख सकती है। परन्तु यह प्रस्ताव उसी समय रखा माना जाएगा जबकि कांग्रेस के दोनों सदन पृथक्-पृथक् उस प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत से पेश करें।

(ii) राज्यों को भी संविधान में संशोधन का प्रस्ताव रखने का अधिकार है, बशर्ते दो-तिहाई राज्यों की विधानसभाएँ कांग्रेस से इस आशय की प्रार्थना करें।

(2) प्रस्ताव की स्वीकृति या अनुसमर्थन-

अनुसमर्थन की निम्नलिखित दो विधियों में से किसी एक को अपनाने का आदेश कांग्रेस दे सकेगी

(i) संशोधन का प्रस्ताव 3/4 राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा अनुसमर्थित होन आवश्यक है।

अथवा

(ii) संशोधन के प्रस्ताव को 3/4 राज्यों में उनके विधानमण्डलों द्वारा इस उद्देश्य से बुलाए गए विशेष सम्मेलनों का अनुसमर्थन प्राप्त होना चाहिए।

संशोधन की पुष्टि के लिए उपर्युक्त दो विधियों में से कौन-सी विधि अपनाई जाए, इसका निर्णय कांग्रेस करती है। व्यवहार में संशोधन का प्रस्ताव कांग्रेस द्वारा रखा जाता है और उसकी स्वीकृति राज्य विधानमण्डलों से ली जाती है। .

 

Comments

Post a Comment

Important Question

कौटिल्य का सप्तांग सिद्धान्त

सरकारी एवं अर्द्ध सरकारी पत्र में अन्तर

ब्रिटिश प्रधानमन्त्री की शक्ति और कार्य

प्लेटो का न्याय सिद्धान्त - आलोचनात्मक व्याख्या

पारिभाषिक शब्दावली का स्वरूप एवं महत्व

प्रयोजनमूलक हिंदी - अर्थ,स्वरूप, उद्देश्य एवं महत्व

नौकरशाही का अर्थ,परिभाषा ,गुण,दोष

शीत युद्ध के कारण और परिणाम

मैकियावली अपने युग का शिशु - विवेचना

व्यवहारवाद- अर्थ , विशेषताएँ तथा महत्त्व