तृतीय विश्व - अर्थ और समस्या
प्रश्न 14. तृतीय विश्व की समस्याओं की विवेचना कीजिए।
अथवा '' तृतीय विश्व देशों को प्रभावित करने वाली प्रमुख संवैधानिक और
राजनीतिक समस्याओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर- तृतीय विश्व के अधिकांश देश सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक दृष्टि से , बहुत पिछड़े हुए हैं। इन देशों के सामने राजनीतिक, संवैधानिक, आर्थिक व सामाजिक दृष्टिकोण से बहुत अधिक समस्याएँ हैं। तृतीय विश्व के देशों को प्रभावित करने वाली प्रमुख संवैधानिक एवं राजनीतिक समस्याएँ निम्न प्रकार हैं
(1) नव-उपनिवेशवाद की प्रवृत्ति-
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् एशिया और - अफ्रीका के अधिकांश देशों ने उपनिवेशवादी शासन से मुक्ति प्राप्त कर राजनीतिक स्वाधीनता प्राप्त कर ली, परन्तु उनकी राष्ट्रीय स्वाधीनता के लिए आज भी कई खतरे बने हुए हैं। विश्व के विकसित एवं शक्तिशाली देशों ने इन राष्ट्रों का नये तरीके से शोषण करना प्रारम्भ कर दिया है। निरन्तर आर्थिक शोषण के कारण इन राष्ट्रों की औद्योगिक विकास अवरुद्ध हो गया है। इन्हें अपने विकास के लिए विकसित राष्ट्रो का मुँह ताकना पड़ता है।
(2) भ्रष्टाचार-
तृतीय विश्व के देशों की एक प्रमुख समस्या भ्रष्टाचार है। इन देशों के राजनीतिक एवं प्रशासनिक क्षेत्र में व्यापक भ्रष्टाचार का बोलबाला है । उच्च राजनीतिक एवं प्रशासनिक पदों को प्राप्त करने के लिए भ्रष्ट तरीकों को अपनाया जाता है। लम्बी एवं जटिल कानूनी न्यायिक प्रक्रिया के कारण भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध नहीं हो पाते हैं और इस अवधि में भी भ्रष्ट तरीकों से तथ्यों के साथ छेड़डाड़ करने की कोशिश की जाती है।
(3) जातिभेद अथवा रंग की समस्या -
तृतीय विश्व के देशों में एक प्रमुख समस्या जातिवाद अथवा रंगभेद की है। उपनिवेशवादी शासकों ने 'श्वेत जाति की श्रेष्ठता के सिद्धान्त को अपनाकार अश्वेत लोगों पर अत्याचार किए हैं। अत: श्वेत और अश्वेत जातियों में आज पारस्परिक अविश्वास और घृणा विद्यमान है। इन देशों में अनेक आदिवासी जातियाँ भी निवास करती हैं, जिनका अन्य स्थानीय जातियों के साथ सामंजस्य का अभाव है, इस कारण भी यहाँ संघर्ष होता रहता है।
(4) आर्थिक विकास की समस्या -
तृतीय विश्व के नव स्वतन्त्र राष्ट्रों की एक अन्य समस्या आर्थिक विकस की है। वे न केवल आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। अथवा अल्प-विकसित हैं, बल्कि आर्थिक विकास के लिए उनके पास स्रोतों और आधुनिक तकनीकी की भी कमी है। अधिकांश देशों में उनकी अर्थव्यवस्था उपनिवेशी नमूने पर आधारित है, जिस पर विदेशी कम्पनियों का एकाधिकार है। कृषि और उद्योग में सामंजस्य न होने के कारण इन देशों में दरिद्रता और बेरोजगारी अधिक है।
ततीय विश्व के अधिकांश देश कच्चा माल पैदा करते हैं। अतः उनकी अर्थव्यवस्था इसके निर्यात पर निर्भर करती है। वे आय के अन्य आन्तरिक स्रोतों को उत्पन्न करने में असमर्थ हैं। कुछ राष्ट्र तो अपने खर्चों को चलाने के लिए भी विदेशी आर्थिक सहायता पर निर्भर करते हैं।
(5) राजनीतिक अस्थिरता-
तृतीय विश्व के नव-स्वतन्त्र राष्ट्रों की एक प्रमुख समस्या राजनीतिक स्थिरता है, जिसके अभाव में राष्ट्रीय स्वतन्त्रता, एकता और अखण्डता को खतरा उत्पन्न हो जाता है। असन्तुष्ट नेता,समूह अथवा कबीले स्वयं या विदेशी शक्तियों से प्रोत्साहन पाकर राजनीतिक अस्थिरता अथवा विद्रोह की स्थिति पैदा करते रहे हैं। यही कारण है कि इन राष्ट्रों में राजनीतिक हत्या, आन्तरिक विद्रोह एवं जातीय युद्ध की घटनाएँ निरन्तर होती रहती हैं। जेमरे (कांगो) व अंगोला लम्बे समय तक गृह युद्ध की आग में झुलसते रहे हैं। रवाण्डा भी जनजातियों के जातीय युद्ध में उलझा रहा है। पिछले वर्षों में जाम्बिया, बरुण्डी एवं रवाण्डा में निर्वाचित सरकारों का तख्ता पलट होने के साथ-साथ खून-खराबा भी हुआ है यहाँ की राजनीतिक परम्पराएँ प्रारम्भ से ही अधिनायकवादी एवं सर्वसत्तावादी रही हैं। यहाँ लोकतन्त्रीय परम्पराओं का विकास नहीं हो सका है।
(6) व्यापक राजनीतिक संगठनों का अभाव-
तृतीय विश्व के नव-स्वतन्त्र राष्ट्रों की एक अन्य प्रमुख समस्या व्यापक राजनीतिक
संगठनों के अभाव की रही है। इन राष्ट्रों में सुदृढ़ राजनीतिक संगठन वाली कोई राष्ट्रव्यापी
पार्टी नहीं रही है, जो जन-समुदाय
में विद्यमान सभी समूहों, वर्गों
एवं हितों को अपने संगठन में समाविष्ट करके उन सभी का प्रतिनिधित्व कर सके और राष्ट्रीय विषयों
पर सामान्य नीति अपनाकर उन्हें सामूहिक कार्यवाही के लिए प्रेरित कर सके। जिन देशों
में राजनीतिक दल पाए भी जाते हैं, उनमें निरन्तर बिखराव और विभाजन की स्थिति देखने को मिलती है।
(7) लोकतन्त्र का अन्त और सैनिक शासन-
तृतीय विश्व के अधिकांश देशों में लोकतान्त्रिक परम्पराओं के अभाव के कारण राजनीतिक निर्णयों में सेना की भूमिका महत्त्वपूर्ण रहती है। अनके देशों में सैनिक तानाशाहों ने असैनिक सरकारों का तख्ता पलटकर सत्ता हथिया ली है। कुछ देशों में सैनिक तानाशाहों द्वारा विद्रोह करके सत्ता हथियाई गई है। इन देशों में घाना, माली, अर्जेण्टीना, नाइजीरिया, पाकिस्तान आदि प्रमुख हैं। इन देशों में सैनिक सरकारों की स्थापना का प्रमुख कारण यह रहा है कि वहाँ की असैनिक सरकारें जनता की महत्त्वाकांक्षाओं के अनुकूल सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक प्रगति करने में असफल रही हैं। अनेक बार आन्तरिक अशान्ति को रोकने तथा देश में स्थायित्व लाने के लिए भी सेना से सत्ता हथिया ली है।
(8) कुशल राष्ट्रीय नौकरशाही का अभाव-
तृतीय विश्व के नव-स्वतन्त्र राष्ट्रों की एक समस्या यह है कि वे कुशल नौकरशाही के अभाव से पीड़ित रहे हैं। उपनिवेशवादी शासनकाल में शिक्षा का विस्तार न होने के कारण स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय इन राष्ट्रों के पास कुशल एवं अनुभवी तथा राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत नौकरशाही नहीं थी, जो प्रशासन के कार्य को सुचारु रूप से सँभाल सकती। इसका परिणाम यह हुआ कि इन राष्ट्रों में उपनिवेशी स्टाफ बना रहा,जिसकी राष्ट्र निर्माण की योजनाओं और उनके कार्यान्वयन में कोई रुचि नहीं थी।
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