सार्वजनिक ऋण क्या हैं ?

प्रश्न 13. सार्वजनिक ऋण से आप क्या समझते हैं ? सार्वजनिक ऋण के भुगतान (शोधन) की रीतियों की विवेचना कीजिए।

उत्तर- 

सार्वजनिक ऋण अथवा लोक ऋण से आशय

सार्वजनिक ऋण वर्तमान सरकारों की आय का एक प्रमुख साधन है। जब सरकार अपने आवश्यक व्ययों की पूर्ति हेतु जनता एवं वित्तीय संस्थाओं तथा अन्य देशों की सरकारों से उधार (ऋण) लेती है, तो उसे सार्वजनिक ऋण कहा जाता  है।

प्रो. फिण्डले शिराज के अनुसार, "सार्वजनिक ऋण वह ऋण है जो एक राज्य अपने देश के नागरिकों अथवा दूसरे देश के नागरिकों से लेता है।"

sarvjanik rin ka arth

इस प्रकार सार्वजनिक ऋण राज्य की आय का एक असामान्य साधन है। जब सार्वजनिक ऋण देशवासियों से लिए जाते हैं, तो उन्हें आन्तरिक ऋण कहा जाता है और जब विदेशों से लिए जाते हैं, तो उन्हें बाह्य ऋण कहा जाता है।

सार्वजनिक ऋण के भुगतान की रीतियाँ-

एक साधारण व्यक्ति की भाँति सरकार को भी अपनी साख बनाए रखने के लिए ऋणों का भुगतान करना पड़ता है। यह सरकार का एक नैतिक दायित्व है। 

अत: ऋणों की वापसी के लिए सरकार को हरसम्भव उपाय करना चाहिए। यद्यपि विशेष परिस्थितियों में सरकार ऋण की वापसी करने से इन्कार कर सकती है, किन्तु सामान्य रूप से ऐसा नहीं किया जाता, क्योंकि सरकार की साख पर सन्देह नहीं किया जा सकता। 

अत: प्रत्येक दृष्टि से सार्वजनिक ऋणों का भुगतान करना अपेक्षित है। 

सार्वजनिक ऋणों के भुगतान (शोधन) की प्रमुख रीतियाँ निम्नलिखित हैं  -

(1) ऋण चुकाने से इन्कार करना-

कभी-कभी ऋण के भार को समाप्त करने के उद्देश्य से सरकार लिए गए ऋणों का भुगतान करने से इन्कार कर सकती है, जैसा कि रूस और अमेरिका की सरकारों ने एक बार किया भी था। किन्तु इसके प्रभाव बहुत हानिकारक होते हैं। इस नीति से जनता का सरकार पर से विश्वास उठ जाता है और वह भविष्य में ऋण लेने में सफल नहीं हो पाती। इस नीति को अपनाने से समाज में असन्तोष उत्पन्न हो जाता है। विदेशी ऋणों को चुकाने से इन्कार करने पर देश के सम्मान को तो ठेस पहुँचती ही है, साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी सरकार की साख समाप्त हो जाती है।

(2) ऋणों का पुनर्शोधन

यदि किसी ऋण को चुकाने की तिथि आ गई हो और सरकार उस ऋण को चुकाने की स्थिति में नहीं है, तो सरकार पुराने ऋणों के स्थान पर नये ऋणपत्र जारी करके ऋण के भुगतान को भविष्य के लिए टाल सकती है। इस रीति के अन्तर्गत पुराने ऋणपत्रों के बदले पुराने ऋणदाताओं को या तो नये ऋणपत्र प्रदान कर दिए जाते हैं अथवा नये ऋणपत्र बेचकर उससे प्राप्त राशि द्वारा पुराने ऋणदाताओं के ऋणों का भुगतान कर दिया जाता है।

(3) ऋण परिवर्तन-

इस रीति के अन्तर्गत सरकार ऋण भुगतान की तिथि से पूर्व ही पुराने ऋणों के बदले नये ऋणों का निर्गमन करती है। व्यूहलर के अनुसार, "ऋण के रूपान्तरण से आशय ऊँची ब्याज दर वाले पुराने ऋण को नीची ब्याज दर वाले नये ऋण में बदलना है।" इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। मान लीजिए सरकार ने किसी समय विशेष में उस समय ऋण लिया हो जब ब्याज की दर 10% हो। माना वर्तमान में यह ब्याज दर घटकर 5% हो जाए, ऐसी स्थिति में सरकार 5% ब्याज की दर पर उतना ही ऋण लेगी जितना ऋण भार उसके ऊपर 10% ब्याज वाली राशि का होगा। इस स्थिति में सरकार नये ऋणों से पुराने ऋणों का भुगतान कर देगी। ऋण रूपान्तरण की स्थिति में सरकार अपने ऋणदाताओं को यह सूचना दे देती है कि या तो वे कम ब्याज की दर स्वीकार कर लें, अन्यथा अपना मूलधन वापस ले लें। इस रीति से मूलधन के भार में कोई कमी नहीं आती, किन्तु ब्याज के भार में अवश्य कमी आती है।

(4) ऋणों का वास्तविक भुगतान-

उपर्युक्त रीतियों के अन्तर्गत ऋणों का वास्तविक भुगतान न होकर उनका निषेध तथा रूपान्तरण होता है। ऋण का वास्तविक भुगतान तब माना जाता है जब सरकार किसी ऋण का मूलधन तथा ब्याज ऋणदाता को लौटा दे। ऋण के वास्तविक भुगतान की रीतियाँ निम्नलिखित

(i) करों में से बचत के द्वारा अथवा बजट आधिक्य द्वारा-

इस रीति के अन्तर्गत सरकार को जितनी आय की आवश्यकता होती है, वह उससे अधिक कर वसूल करती है और इस प्रकार आय की तुलना में कम व्यय करके कुछ बचत करती है, जिसका उपयोग सार्वजनिक ऋणों के भुगतान में किया जाता है। वस्तुतः यह ऋण भुगतान की प्राचीन रीति है और वर्तमान में इसका प्रयोग सरल नहीं है, क्योंकि वर्तमान में सरकार के व्यय इतने बढ़ गए हैं कि बचत के बजट के स्थान पर घाटे के बजट बनने लगे हैं।

(ii) ऋण परिशोधन कोष द्वारा-

ऋणों के भुगतान का यह एक नियमित तथा सर्वाधिक प्रचलित ढंग है। इस विधि के अन्तर्गत सरकार ऋणों का भुगतान करने के उद्देश्य से एक कोष की स्थापना करती है और इस कोष में प्रतिवर्ष एक निश्चित राशि अथवा जो भी राशि उपलब्ध हो, जमा करती रहती है। इस राशिको कहीं विनियोजित कर दिया जाता है, जिससे विनियोजित राशि और ब्याज की राशि बढ़ती रहती है। डाल्टन के अनुसार ऋण परिशोधन कोष निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं

(a) निश्चित कोष

इस कोष में सरकार की वार्षिक आय में से प्रतिवर्ष एक निश्चित रकम जमा की जाती है।

(b) अनिश्चित कोष

इस कोष में डाली जाने वाली राशि अनिश्चित एवं अनियमित होती है। इसमें डाली जाने वाली राशि सरकार के बजट के आधिक्य पर निर्भर करती है।

(iii) वार्षिक वृत्ति द्वारा-

वार्षिक वृत्ति ऋण चुकाने की वह रीति है जिसके अन्तर्गत ऋणों की वापसी वार्षिक किस्तों में की जाती है। यह रीति आमतौर से स्थायी एवं दीर्घकालीन ऋणों के लिए अपनाई जाती है। इस रीति के अन्तर्गत सरकार ऋण की राशि तथा ब्याज का अनुमान इस आधार पर लगाती है कि अमुक राशि चुकाने पर अमुक समय पर ऋण चुकाया जा सकेगा। अतः ऋण की मात्रा, । 

ब्याज की दर और भुगतान की अवधि के आधार पर सरकार द्वारा वार्षिक किस्त की गणना कर ली जाती है, जिसका भुगतान नियमित रूप से प्रतिवर्ष कर दिया जाता है। एक से अधिक ऋणदाताओं की स्थिति में सरकार प्रत्येक ऋणदाता को आनुपातिक रूप से अथवा ऋणपत्रों के क्रमांक से अथवा अन्य किसी तरीके से ऋणों का शोधन करना प्रारम्भ कर देती है। इस रीति के अन्तर्गत प्रतिवर्ष ऋण का भार कम होता रहता है और अवधि समाप्त होने पर सम्पूर्ण ऋणों का शोधन हो चुका होता है।

(iv) पूँजी कर-

जब सरकार पर ऋणों का भार बहुत अधिक हो जाता है और वह शीघ्र इससे छुटकारा पाना चाहती है, तो वह पूँजी कर का सहारा लेती है, जिसके अन्तर्गत सामान्य करारोपण के अतिरिक्त व्यक्तियों की सम्पत्ति एवं आय पर कर लगाया जाता है। इस विधि के अन्तर्गत सरकार द्वारा सम्पत्ति की अधिकतम मात्रा निर्धारित कर दी जाती है और इस सीमा से ऊपर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर प्रगतिशील आधार पर अर्थात् बढ़ती हुई दरों से करारोपण किया जाता है। 

डाल्टन ने इसका समर्थन करते हुए कहा है, "ऋणों को सरलतापूर्वक निपटाने हेतु पूँजी कर अपने गुणों के कारण सबसे अच्छा है।"

 

 

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