मराठा - उदय एवं पतन के 13 कारण


MJPRU-B.A-II-History I/2020 
प्रश्न 15. 17th शताब्दी में मराठा शक्ति के उत्कर्ष के कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा ''मराठों के उत्थान एवं पतन के कारण बताइए।

मराठों का उत्थान

उत्तर -17 वीं शताब्दी में मराठा शक्ति के उत्कर्ष के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

(1) महाराष्ट्र की भौगोलिक स्थिति-

महाराष्ट्र की भौगोलिक स्थिति ने मराठों के उत्थान में विशेष योगदान दिया। महाराष्ट्र चारों ओर से विन्ध्य एवं सतपुड़ा पर्वतों की श्रृंखलाओं से घिरा हुआ था। इनकी ऊँची चोटियों एवं स्थूल चट्टानों को मराठों ने अपने परिश्रम से सुरक्षात्मक दुर्गों का रूप दे दिया। इन्हीं दुर्गों की सहायता से मराठों ने उत्तर की ओर से आने वाले आक्रमणकारियों से अपनी रक्षा की। उनमें दृढ़ता, आत्म-विश्वास, परिश्रम एवं साहस की भावना जाग्रत हुई, जो उनके उत्कर्ष में सहायक सिद्ध हुई।
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(2) धार्मिक जागरण- 

15वीं तथा 16वीं शताब्दी के धार्मिक जागरण का भी मराठों के उत्कर्ष पर प्रभाव पड़ा। इस धार्मिक जागरण के विचारक एवं नेता गुरु रामदास, एकनाथ, हेमाद्रि, वामन पण्डित, ज्ञानेश्वर, चक्रधर आदि थे। इन सन्तों ने सरस गीतों एवं भजनों के द्वारा लोगों में राष्ट्रीय चेतना जाग्रत की। इस राष्ट्रीय चेतना के फलस्वरूप मराठे स्वयं को संगठित तथा सुरक्षित करने के लिए प्रेरित हुए।

(3) दक्षिणी राज्यों के प्रशासन में हिन्दुओं का प्रभाव-

मराठों ने लम्बे समय तक दक्षिण के मुस्लिम राज्यों में उच्च सैनिक एवं प्रशासनिक पदों पर कार्य किया था। इससे वे सैनिक तथा प्रशासनिक कार्यों में दक्ष हो गए, जो कालान्तर में उनके लिए बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ।

(4) समाज में भेदभाव का अभाव-

ये भी जाने -

तत्कालीन महाराष्ट्र के सामाजिक जीवन में जाति-पाँति तथा ऊँच-नीच की भावनाएँ बहुत कम थीं। इसके अतिरिक्त वहाँ पर्दा प्रथा का भी अभाव था, फलस्वरूप वहाँ की वीर महिलाओं ने मराठों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

(5) मराठों की चारित्रिक विशेषताएँ-

मराठों की चारित्रिक विशेषताएँ भी उनके उत्थान में सहायक सिद्ध हुईं। उनमें अदम्य साहस, एकता, परिश्रम, कूटनीतिज्ञता एवं स्वतन्त्रता के प्रति प्रेम आदि अनेक चारित्रिक गुण विद्यमान थे, जिनके बल पर मराठों ने
मुगल सेना के दाँत खट्टे कर दिए।

(6) शिवाजी का कुशल नेतृत्व -

मराठे एकजुट होने के लिए प्रयत्नशील थे।  ऐसे समय में उन्हें शिवाजी जैसे योग्य, साहसी एवं बुद्धिमान व्यक्ति का नेतृत्व प्राप्त हो गया। शिवाजी जैसे वीर और कर्मठ नेता ने मराठों को परतन्त्रता से मुक्ति पाने हेतु प्रेरित किया।

(7) दक्षिण की सल्तनतों का निरन्तर ह्रास

शिवाजी के उत्थान के समय तक दक्षिण में केवल गोलकुण्डा तथा बीजापुर की ही सल्तनतें रह गई थीं। इनके आन्तरिक कलह ने शिवाजी के उत्थान का मार्ग प्रशस्त किया।

मराठों के पतन के कारण 

मराठों के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

(1) एकता का अभाव-

पेशवा की अयोग्यता तथा शक्तिहीनता से मराठा साम्राज्य पाँच भागों-पेशवा, सिन्धिया, भोंसले, होल्कर तथा गायकवाड़ नामक राज्यों में विभक्त हो गया था। पेशवा की शक्तिहीनता का लाभ उठाकर मराठा सरदारों ने अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित कर ली और ईर्ष्या और द्वेष की भावना ने उनमें पारस्परिक संघर्ष उत्पन्न कर दिया।

(2) योग्य एवं कुशल नेतृत्व का न होना-

मराठों की पराजय का प्रमुख कारण योग्य एवं कुशल नेतृत्व न होना था। पेशवा माधवराव, महादजी सिन्धिया,नाना फड़नवीस के बाद ऐसा कोई योग्य नेता न हुआ जो समस्त मराठों को एक सूत्र में बाँध सकता। अत: उनका पतन अनिवार्य हो गया।

(3) दोषपूर्ण शासन व्यवस्था-

मराठों के पतन में उनकी दोषपूर्ण शासन व्यवस्था ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। मराठा सरदारों ने शासन व्यवस्था में सुधार की ओर कोई ध्यान नहीं दिया और वे आन्तरिक युद्धों में व्यस्त रहे, जिसका परिणाम यह हुआ कि शासन व्यवस्था शिथिल पड़ गई।

(4) दोषपूर्ण सैन्य व्यवस्था - 

मराठों की सैनिक दुर्बलता व दोषपूर्ण सैन्य व्यवस्था भी उनके पतन का कारण बनी। उनके पास तोपखाने का भारी अभाव था। अतएव साधनों के अभाव में मराठों की सेना अंग्रेजी सेना के समक्ष अधिक समय तक न ठहर सकी।

(5) देशी राज्यों के प्रति दोषपूर्ण नीति

मराठों ने समय पर हैदर अली, टीपू ,  सुल्तान, निज़ाम आदि को सहायता नहीं दी, जिससे अंग्रेजों के आक्रमण के समय उन्हें उनका समर्थन न मिल सका और वे अंग्रेजों के संरक्षण में आ गए।

(6) जागीरदारी प्रथा-

मराठों ने जागीरदारी प्रथा को अपनाया था, जिससे सम्पूर्ण मराठा साम्राज्यं जागीरदारों में विभक्त हो गया और उसकी एकता पूर्णतया समाप्त हो गई।

(7) सामुद्रिक शक्ति का अभाव- 

मराठों ने सामुद्रिक शक्ति के विकास की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। इसके विपरीत अंग्रेजों की सामुद्रिक शक्ति अत्यन्त दृढ़ और आधुनिक जहाजी बेड़े से सुसज्जित थी।

(8) आर्थिक कठिनाइयाँ-

मराठों की नीति से कृषि तथा व्यापार पूर्णतया चौपट हो गया था, अतएव मराठों की निश्चित आय के साधन समाप्त हो गए थे। 'चौथ' तथा 'सरदेशमुखी' से भी उन्हें पर्याप्त धन प्राप्त नहीं होता था। धन के अभाव में उनका शासन शिथिल पड़ गया, सेना शक्तिहीन और व्यवस्था अस्तव्यस्त हो गई, जो उनके पतन का मूल कारण सिद्ध हुई।
उक्त सभी कारणों ने मराठों के पतन में विशेष सहयोग दिया।. ...

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  1. Bharat mein manata Shakti ke utthan ka varnan kijiye

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