हिटलर - की विदेश नीति


MJPRU-BA-III-History II / 2020 
प्रश्न 9. हिटलर के अधीन नाजी जर्मनी की विदेश नीति क्या थी ? द्वितीय विश्व युद्ध के लिए यह कहाँ तक उत्तरदायी थी ?
अथवा '' हिटलर की विदेश नीति का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर - सत्तारूढ़ होते ही हिटलर ने जर्मनी की व्यवस्था को बदलना शुरू कर दिया। उसने राज्य की समस्त शक्तियों को अपने हाथों में केन्द्रित कर लिया और अपने विरोधियों का दमन करके जर्मनी का नात्सीकरण आरम्भ कर दिया। एक सच्चे देशभक्त की भाँति वह जर्मनी को प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व की शक्तिशाली अवस्था में लाना चाहता था । वह सन् 1919 में वर्साय सन्धि के अनुसार निश्चित की गई जर्मन सीमा से सन्तुष्ट नहीं था और वह जर्मनी का विस्तार करना चाहता था। वह । समुद्र पार बस्तियाँ प्राप्त करने की अपेक्षा जर्मनी के निकटवर्ती क्षेत्रों पर अधिकार करना अधिक उचित समझता था। उसका विचार था कि समुद्र पार बस्तियों की अपेक्षा देश के निकट स्थित प्रदेशों पर प्रभुत्व स्थापित करना अधिक सुगम एवं स्थायी होगा। उसकी धारणा थी कि देशों की वर्तमान सीमाएँ मनुष्य की बनाई हुई हैं  और मनुष्य जब भी चाहे इन्हें परिवर्तित कर सकता है। हिटलर प्रारम्भ से ही वर्साय सन्धि द्वारा लगाए गए प्रतिबन्धों की अवहेलना करते हुए अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने लगा। फलत: हिटलर ने अपनी विदेश नीति को सुदढ़ करके जर्मनी को यूरोप का एक सबसे शक्तिशाली देश बना दिया।
Adolf Hitler history in hindi

हिटलर की विदेश नीति

हिटलर अपने समय में यूरोप महाद्वीप का महान व्यक्ति था। वह जर्मन राष्ट्रवाद ती भावना से प्रेरित था । उसने अपने वैदेशिक क्रियाकलापों द्वारा समस्त विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया । वैदेशिक क्षेत्र में उसने अग्रलिखित मुख्य कार्य किए

(1) राष्ट्र संघ का त्याग - 

राष्ट्र संघ की प्रसंविदा व उद्देश्य में हिटलर को कोई विश्वास नहीं था। अतः उसने सर्वप्रथम 14 अक्टूबर,1933 को जर्मनी को राष्ट्र संघ की सदस्यता से अलग करने की घोषणा की।

(2) पोलैण्ड के साथ समझौता -

पोलैण्ड व जर्मनी के सम्बन्ध शत्रुतापूर्ण थे। किन्तु हिटलर ने अपनी कूटनीतिक योग्यता के बल पर 23 जनवरी, 1934 को पोलैण्ड के साथ समझौता करने में सफलता प्राप्त की, जिसके फलस्वरूप दोनों देशों को एक-दूसरे से खतरा समाप्त हो गया।

(3) सार प्रदेश का जर्मनी में विलय - 

सन् 1935 में सार प्रदेश की जनता द्वारा दिए गए जनमत के आधार पर सार प्रदेश को जर्मनी में विलीन कर दिया गया।

(4) जर्मनी के शस्त्रीकरण की घोषणा -

वर्साय सन्धि के द्वारा जर्मनीकी सैनिक प्रगति पर रोक लगा दी गई थी। किन्तु हिटलर ने उन धाराओं का उल्लंघन करते हुए 16 मार्च,1935 को यह स्पष्ट घोषणा कर दी कि जर्मनी के पास 5.5 लाख सेना हर समय तैयार रहेगी।

(5) इंग्लैण्ड के साथ समझौता

मित्र राष्ट्रों में फूट डालने तथा इंग्लैण्ड की ओर से विरोध की समस्या को समाप्त करने के उद्देश्य से हिटलर ने 18 जून, 1935 को इंग्लैण्ड के साथ एक समझौता किया । इंग्लैण्ड ने जर्मनी को यह अधिकार दे दिया ' कि वह इंग्लैण्ड की जल सेना के 35% भाग तक अपनी जल सेना का विकास कर सकेमा तथा जर्मनी पनडुब्बियों का निर्माण भी कर सकेगा।

(6) राइन प्रदेश का सैन्यीकरण - 

वर्साय सन्धि के द्वारा राइन प्रदेश में जर्मनी की . किलेबन्दी पर रोक लगा दी गई थी। किन्तु हिटलर ने 7 मार्च, 1936 को इस शर्त का उल्लंघन करते हुए 35,000 सैनिक राइन प्रदेश में भेज दिए।

(7) 'रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी' का निर्माण - 

हिटलर ने इटली व जापान दो महान् शक्तियों को मित्र बनाकर अपनी कूटनीतिक योजना सफल कर दी। उसने । इटली को राष्ट्र संघ के विरुद्ध सहायता देकर तथा स्पेन के गृह युद्ध में इटली का साथ देकर वहाँ के तानाशाह मुसोलिनी को अपना मित्र बना लिया। अक्टूबर, 1936 में हिटलर और मुसोलिनी के मध्य एक गुप्त सन्धि हुई। 25 नवम्बर,1936 को हिटलर । ने जापान के साथ एण्टी कॉमिण्टर्न पैक्ट' सम्पन्न किया। लगभग एक वर्ष पश्चात् । नवम्बर, 1937 में इस सन्धि में इटली को भी सम्मिलित कर लिया गया । फलस्वरूप यूरोप की राजनीति में 'रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी' का निर्माण हुआ।

(8) ऑस्ट्रिया का जर्मनी में विलय-

ऑस्ट्रिया में जर्मन जाति की प्रधानता होने के कारण हिटलर ऑस्ट्रिया पर अपना राष्ट्रीय अधिकार मानता था। रोम-बर्लिनटोकियो धुरी के निर्माण के उपरान्त उसने ऑस्ट्रिया के साथ 11 जुलाई, 1936 को एक समझौता किया। परिस्थितियाँ अपने अनुकूल समझकर उसने मार्च, 1938 में ऑस्ट्रिया पर अधिकार कर लिया।

(9) म्यूनिख समझौता व चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार - 

जर्मनी की सीमा चेकोस्लोवाकिया की सीमा से लगी हुई थी। इस राज्य में लगभग 35 लाख जर्मन रहते थे। सितम्बर, 1938 में हिटलर ने माँग की कि चेकोस्लोवाकिया राज्य के भविष्य के विषय में वहाँ जनमत संग्रह करा लिया जाए। वह इस राज्य को जर्मनी में मिलाना चाहता था। अतः 'चेकोस्लोवाकिया की समस्या पर विचार करने के लिए जर्मनी, इटली, फ्रांस व इंग्लैण्ड के प्रतिनिधि 29 सितम्बर, 1938 को म्यूनिख में एकत्र हुए । हिटलर को सन्तुष्ट करने के लिए सभी सदस्यों के मध्य म्यूनिख समझौता हुआ। इंग्लैण्ड के प्रतिनिधि चर्चिल के शब्दों में यह समझौता चेकोस्लोवाकिया के लिए मृत्युदण्ड के समान था। सन् 1939 में हिटलर ने वहाँ की जनता को भड़काकर विद्रोह करा दिया और जनता ने स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। चेकोस्लोवाकिया के राष्ट्रपति व प्रधानमन्त्री वार्ता करने के लिए हिटलर के पास बर्लिन पहुँचे । हिटलर ने बल प्रयोग के द्वारा उनसे एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करा लिए और 15 मार्च, 1939 को चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार कर लिया।

(10) पोलैण्ड पर आक्रमण व द्वितीय विश्व युद्ध का आरम्भ - 

अपनी स्थिति को 'सुदृढ़ करने के पश्चात् 1 सितम्बर, 1939 को हिटलर ने पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया। फ्रांस ने हिटलर से पोलैण्ड से सेना हटाने की माँग की। हिटलर ने उस माँग पर कोई ध्यान नहीं दिया। अतः फ्रांस ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस प्रकार धीरे-धीरे अन्य शक्तियाँ भी युद्ध में सम्मिलित होती गईं और यह विश्व युद्ध में परिवर्तित हो गया। इसे द्वितीय विश्व युद्ध कहा गया।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि हिटलर ने प्रारम्भ से ही जर्मनी की विदेश नीति को सैनिक महत्त्वाकांक्षाओं पर आधारित किया था। वह वर्साय सन्धि को जर्मनी के माथे पर कलंक समझता था। उसका विचार था कि जर्मनी एक विश्व शक्ति है और उसकी इस स्थिति को कोई मिटा नहीं सकता। अतः वर्साय सन्धि द्वारा हुए जर्मनी के अपमान का बदला लेने के लिए वह युद्ध अनिवार्य समझता था । अतः . यह कहा जा सकता है कि हिटलर की विदेश नीति द्वितीय विश्व युद्ध के लिए उत्तरदायी थी।

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