राष्ट्र संघ की स्थापना ,कार्य तथा उद्देश्य
प्रश्न
12. राष्ट्र
संघ की स्थापना के क्या उद्देश्य थे ? इसके संगठन, कार्य तथा उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
अथवा '' राष्ट्र संघ की सफलताओं (उपलब्धियों) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
- सन् 1914 से
सन् 1918 तक विश्व के सभी देशों को प्रथम विश्व युद्ध की आग
में जलना पड़ा था । युद्ध में हुए अपार जन-धन के विनाश के कारण एक बार पुनः
विश्वव्यापी स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना का अनुभव किया गया,राष्ट्र संघ इसी अवधारणा का परिणाम था।
राष्ट्र संघ की स्थापना के कारण -
प्रथम विश्व
युद्ध के अन्तिम क्षणों में अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने विश्व-शान्ति
के लिए चौदह-सूत्रीय कार्यक्रम प्रस्तुत किया था। इस कार्यक्रम में विश्व की भावी
रचना तथा स्थायी शान्ति के लिए सभी देशों का एक संगठन स्थापित करने की बात कही गई
थी।
इतिहासकार मैरियट के शब्दों में,“प्रथम विश्व युद्ध का अन्त हो जाने के पश्चात् विल्सन ने एक ऐसी
अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना की इच्छा व्यक्त की थी जिसके द्वारा सभी देशों
के आपसी झगड़े शान्तिपूर्वक हल किए जा सकें और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर
सुगमतापूर्वक विचार किया जा सके।"
पेरिस शान्ति
सम्मेलन में विल्सन ने अपनी इस योजना को क्रियान्वित करने का पूरा प्रयास किया था।
उनके संकल्प के विषय में इतिहासकार एच. ए. एल. फिशर ने लिखा है कि “पेरिस शान्ति सम्मेलन में एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के निर्माण की विल्सन
की विशेष इच्छा थी और उनके प्रयासों के फलस्वरूप ही राष्ट्र संघ अस्तित्व में आ
सका।"
पेरिस के शान्ति
सम्मेलन में राष्ट्र संघ के संविधान को तैयार करने का कार्य विल्सन
(अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति) की अध्यक्षता में 19 प्रतिनिधियों की एक समिति को सौंपा गया। 14 जनवरी,
1919 को राष्ट्र संघ आयोग द्वारा संविधान का ड्राफ्ट शान्ति
सम्मेलन के सामने रखा गया और इसके संशोधित रूप को 28 अप्रैल,
1919 को 'शान्ति सम्मेलन' में स्वीकार कर लिया गया। 10 जनवरी, 1920 को राष्ट्र संघ का 'प्रसंविदा' (संविधान) लागू कर दिया गया और वैधानिक रूप से राष्ट्र संघ का जन्म
हुआ। राष्ट्र संघ का मुख्य कार्यालय जेनेवा (स्विट्जरलैण्ड) में स्थापित
किया गया।
राष्ट्र संघ के सदस्य -
प्रारम्भ में इसके सदस्य वर्साय सन्धि पर हस्ताक्षर करने वाले मित्र
राष्ट्र देश थे; जैसे-ब्रिटेन, इटली,जापान,चीन,फ्रांस आदि ।
अमेरिका इस राष्ट्र संघ का सदस्य नहीं बन सका था। जर्मनी सन् 1926 में इसका सदस्य बना और अक्टूबर, 1933 में हट गया ।
सोवियत संघ सन् 1933 में इसका सदस्य बना और सन् 1940 में फिनलैण्ड पर आक्रमण के कारण उसे सदस्यता से वंचित कर दिया गया। जापान
ने सन् 1933 में और इटली ने सन् 1937
में इसकी सदस्यता त्याग दी। सन् 1938 में संघ के सदस्यों की
कुल संख्या 62 तक पहुँच गई थी, परन्तु
अप्रैल, 1946 में संघ की अन्तिम बैठक के समय यह घटकर 43 रह गई थी और इनमें से 34 राज्यों के प्रतिनिधियों
ने ही बैठक में भाग लिया।
राष्ट्र संघ के उद्देश्य
राष्ट्र संघ के उद्देश्य इस संघ की प्रसंविदा की प्रस्तावना
में निहित थे, जो निम्न प्रकार थे
(1) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की स्थापना अर्थात् न्याय और सम्मान के
आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के विकास द्वारा भावी युद्धों को टालना,
(2) विश्व के राष्ट्रों के बीच भौतिक व मानसिक सहयोग को प्रोत्साहन देना,
जिससे मानव सुखी व समृद्ध बन सके, तथा
(3)
पेरिस शान्ति सम्मेलन द्वारा स्थापित व्यवस्था को कायम रखना।
राष्ट्र संघ का संगठन
राष्ट्र संघ के प्रमुख अंग निम्न प्रकार थे
(1) सभा (Assembly) -
राष्ट्र संघ का प्रत्येक सदस्य देश सभा का सदस्य था। प्रत्येक
सदस्य देश सभा में 3 सदस्य तक भेज सकता था,
परन्तु प्रत्येक देश का मत एक ही गिना जाता था। राष्ट्र संघ की सभा
की बैठक प्रतिवर्ष जेनेवा में होती थी। यह सभा राष्ट्र संघ के सभी विषयों पर
विचार-विमर्श कर सकती थी। निर्णय बहुमत से होते थे। कोई भी राष्ट्र सभा के
एक-तिहाई सदस्यों के बहुमत के द्वारा राष्ट्र संघ का सदस्य बन सकता था। सभा परिषद्
के सदस्यों व अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों का निर्वाचन करती थी।
(2) परिषद् (Council) -
यह राष्ट्र संघ की कार्यपालिका थी और सभा से
अधिक शक्तिशाली थी। इसके संगठन का आधार शक्तियों की उच्चता का सिद्धान्त था।
परिषद् की सदस्यता दो प्रकार की थी-स्थायी और अस्थायी। प्रारम्भ में बड़े देश ही
परिषद् के सदस्य होना चाहते थे, परन्तु छोटे देशों के विरोध के कारण उन्हें अस्थायी सदस्यता दी गई।
प्रसंविदा के अनुसार सभी मुख्य मित्र राष्ट्र (Allied Powers) इसके स्थायी सदस्य थे, परन्तु अमेरिकी सीट खाली रही,क्योंकि वह राष्ट्र संघ का सदस्य नहीं बन सका था। अतः इसके चार
स्थायी सदस्य थे-ब्रिटेन, फ्रांस, जापान
और इटली। स्थायी व अस्थायी देशों की संख्या घटती-बढ़ती रही। जर्मनी व सोवियत संघ
भी आगे चलकर स्थायी सदस्य बने । अस्थायी देशों की संख्या प्रारम्भ में 4 थी,परन्तु सन् 1939 में यह
संख्या 11 थी। अस्थायी सदस्य 3 वर्ष के
लिए चुने जाते थे।
जो विवाद राष्ट्र
संघ के अधिकार क्षेत्र में आते थे अथवा जिन विषयों का सम्बन्ध विश्व में
शान्ति की स्थिति बनाए रखने से होता था, उन सब पर परिषद् ही विचार कर सकती थी। इसके अतिरिक्त कुछ विषय परिषद् के
ही क्षेत्राधिकार में आते थे;
जैसे-सेक्रेटरी
जनरल द्वारा की गई नियुक्तियों की पुष्टि, हथियारों के घटाने की योजनाएँ बनाना, किसी सदस्य को राष्ट्र
संघ से निकालना आदि ।
(3) सचिवालय (Secretariat) -
सचिवालय
का अध्यक्ष सेक्रेटरी जनरल होता था, जो परिषद् की सलाह से सचिवों तथा अन्य स्टाफ की नियुक्ति करता था। सचिवालय
का कार्य प्रशासनिक कार्यों का संचालन था; जैसे-राष्ट्र
संघ की कार्यवाही को लिखना, राष्ट्र संघ के लिए आवश्यक आँकड़े एकत्रित करना।
(4) अन्तर्राष्ट्रीय न्याय का स्थायी न्यायालय (Permanent Court of International Justice) -
राष्ट्र संघ प्रसंविदा के अन्तर्गत एक स्थायी अन्तर्राष्ट्रीय
न्यायालय की भी व्यवस्था की गई थी, जिसकी स्थापना 13 दिसम्बर, 1920 को हेग में हुई थी। प्रारम्भ में इसमें 11
न्यायाधीश थे, परन्तु सन् 1931 में यह
संख्या बढ़ाकर 15 कर दी गई । न्यायाधीश सभा द्वारा 1 वर्ष के लिए निर्वाचित किए जाते
इस न्यायालय का
क्षेत्राधिकार दो प्रकार का था-ऐच्छिक तथा आवश्यक । जब दो या अधिक राज्य कोई विवाद
निर्णय के लिए इसके सामने उपस्थित करते थे, तो वह ऐच्छिक अधिकार क्षेत्र था, किन्तु कुछ राज्यों
ने न्यायालय के संविधान के साथ संलग्न एक प्रपत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इसके
अनुसार इन राज्यों ने यह स्वीकार किया कि सन्धियों की व्याख्या, अन्तर्राष्ट्रीय उत्तरदायित्व के उल्लंघन और इसके लिए निश्चित की जाने
वाली क्षतिपूर्ति के सम्बन्ध में इस न्यायालय का अधिकार क्षेत्र . आवश्यक था।
इस न्यायालय को
सन् 1946 में संयुक्त राष्ट्र संघ के
न्याय के अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।
(5) अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ (International Labour Organisation)-
राष्ट्र संघ के प्रसंविदा में श्रम
सम्बन्धी बातें होने के कारण एक अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघ जेनेवा में स्थापित किया
गया। इस संघ का मुख्य उद्देश्य श्रमिकों की स्थिति में सुधार करना था और श्रम की
शर्ते उचित आधार पर निर्धारित करना था। वे देश जो राष्ट्र संघ के सदस्य
नहीं थे (जैसे अमेरिका),वे इस संघ के सदस्य बने थे।
राष्ट्र संघ के कार्य
राष्ट्र संघ के प्रमुख कार्य निम्न प्रकार थे
(1) विश्व में शान्ति स्थापित करना -
युद्धों
को रोककर विश्व में शान्ति स्थापित करना राष्ट्र संघ का मुख्य कार्य था।
इसके लिए प्रसंविदा में कई धाराएँ थीं, जिनमें कुछ व्यवस्थाएँ निम्न प्रकार थीं-
(i)
युद्ध प्रारम्भ करने के अधिकार पर प्रतिबन्ध लगाया गया,
(ii) किसी राष्ट्र के युद्ध प्रारम्भ करने की स्थिति उत्पन्न करने पर आर्थिक प्रतिबन्ध
लगाने और फिर सैनिक कार्यवाही करने की व्यवस्था थी, तथा
(iii)
निःशस्त्रीकरण करने की भी व्यवस्था की गई।
(2) अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग का विकास -
राष्ट्र संघ के सदस्य राज्यों से कहा गया कि वे अपने देशों व
उन देशों में जिनके साथ उनके व्यापारिक सम्बन्ध हैं, उनके स्त्री-पुरुष व बच्चों के लिए न्यायप्रद वं मानवतापूर्ण स्थितियाँ
उत्पन्न करें और अधीन देशों की जनता के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करें।
(3) प्रशासनात्मक कार्य -
राष्ट्र संघ के शासन कार्यों में
सान्द्र की घाटी का तथा डेन्जिंग के स्वतन्त्र नगर का प्रशासन विशेष महत्त्व रखता
है। इन दोनों के शासन की व्यवस्था वर्साय की सन्धि द्वारा राष्ट्र संघ को
सौंपी गई थी।
(4) मैण्डेट सम्बन्धी कार्य -
प्रथम
विश्व युद्ध के बाद शत्रु राष्ट्रों से छीने गए प्रदेशों का शासन राष्ट्र संघ को
सौंपा जाना ही मैण्डेट व्यवस्था है। राष्ट्र संघ ने ऐसे प्रदेशों का शासन
विभिन्न देशों के अधीन कर दिया था जिन्हें अपनी प्रशासन सम्बन्धी रिपोर्ट परिषद्
को देनी पड़ती थी।
(5) अल्पसंख्यकों का संरक्षण -
यूरोप
के विभिन्न राज्यों में उस समय अल्पसंख्यकों की संख्या लगभग 3 करोड़ थी। इन अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का भार, पेरिस
सम्मेलन को और उसके बाद की गई सन्धियों ने राष्ट्र संघ को सौंपा।
अल्पसंख्यक अपनी शिकायत का आवेदन-पत्र राष्ट्र संघ को भेज सकते थे, उस पर राष्ट्र संघ उचित कार्यवाही कर सकता था।
(6) गैर-राजनीतिक कार्य -
जैसे स्वास्थ्य
सम्बन्धी कार्य, आर्थिक पुनर्निर्माण
व सहयोग के लिए प्रयास करना, स्त्रियों व बच्चों के शोषण को
रोकना, शरणार्थियों की समस्या हल करना आदि।
राष्ट्र संघ की सफलताएँ (उपलब्धियाँ)
राष्ट्र संघ ने अपने जीवनकाल में लगभग 70 विवादों का कुशलतापूर्वक समाधान किया था। शान्ति स्थापना के उद्देश्य से
स्थापित इस संस्था की अनेक महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ थीं, जिनमें
से निम्नलिखित प्रमुख थीं
(1) सन् 1920 में जर्मनी ने कुछ प्रदेश (योपेन और
मालमेदी) बेल्जियम से छीनने का प्रयास कियां । राष्ट्र संघ ने सन् 1921 में जर्मनी के विरुद्ध अपना निर्णय दिया तथा बेल्जियम को वे प्रदेश वापस
मिल गए।
(2) सन् 1924 से सन् 1926 तक टर्की
और ग्रेट ब्रिटेन के मध्य उत्पन्न हुए विवादों को सुलझाया गया।
(3) सन् 1925 में सीमाबन्दी के प्रश्न पर यूनान तथा
बुल्गारिया में झगड़ा हो गया। राष्ट्र संघ ने यूनान को दोषी ठहराया तथा उसे
क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी ठहराया
(4) वर्साय सन्धि के द्वारा सार प्रदेश पर राष्ट्र संघ का अधिकार
स्वीकार किया गया था। एक वर्ष पश्चात् सन् 1935 में सार
प्रदेश की जनता का जनमत लिया गया। जनता ने जर्मनी में मिलने की इच्छा व्यक्त की।
अतः सार प्रदेश जर्मनी को दे दिया गया। राष्ट्र संघ के इस निर्णय से फ्रांस
असन्तुष्ट हो गया। इस सम्बन्ध में फिशर ने लिखा है कि “जिस
वर्ष सार प्रदेश जर्मनी को दिया गया,वह वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय
क्षेत्र में सुखी सम्बन्धों के स्थान पर यूरोपीय राजनीति में प्रथम विश्व युद्ध के
पश्चात् आने वाली विपत्तियों का संकेत था।"
(5) राजनीतिक क्षेत्र के अतिरिक्त राष्ट्र संघ ने सामाजिक एवं
जन-कल्याण के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण कार्य किए थे। इस क्षेत्र में उसका
सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना करना था। इस
संगठन को राष्ट्र संघ का अभिन्न अंग बनाया गया था। श्रमिकों के सामाजिक,
राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक
और शैक्षणिक स्तर को सुधारने की दिशा में इस संगठन ने प्रशंसनीय कार्य किया।
"
(6)
जनता के स्वास्थ्य में सुधार करने तथा लोगों के शारीरिक विकास के
लिए उत्तम वातावरण उपलब्ध कराने हेतु राष्ट्र संघ ने अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य
संगठन की स्थापना की थी। इस संगठन के तत्त्वावधान में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं
के ऊपर " बहुत-से सम्मेलन बुलाए गए। इसके अतिरिक्त मलेरिया,टी. बी., हैजा, चेचक तथा अन्य
संक्रामक और खतरनाक बीमारियों की रोकथाम करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रयास
करके राष्ट्र संघ ने मानव जाति की प्रशंसनीय सेवा की थी।
निष्कर्ष -
इस प्रकार राष्ट्र संघ ने अपने बीस वर्ष के कार्यकाल में जो कार्य
किए, उनका ऐतिहासिक महत्त्व है। विभिन्न देशों की सभ्यता एवं
संस्कृति के आदान-प्रदान के माध्यम से विश्व संस्कृति की स्थापना करना, नशीली वस्तुओं के व्यापार पर प्रतिबन्ध लगाना, अन्तर्राष्ट्रीय
श्रम संगठन की स्थापना करना आदि ऐसे कार्य थे जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता । राष्ट्र
संघ के माध्यम से लोग यह समझ सके कि बिना युद्ध किए हुए ही शान्तिमय तरीकों से
समझौता वार्ता से समस्याएँ और विवाद सुलझाए जा सकते हैं। चिन्तन और विचार के
क्षेत्र में यह इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी। इतिहासकार फिशर ने लिखा है,
"विभिन्न देशों को प्रदान किए गए प्रशासनिक अधिकारों का
निरीक्षण करके राष्ट्र संघ ने सम्पूर्ण विश्व को एक निश्चित अवधि तक
युद्धों की लपटों से बचाकर रखा था।"
MANOJ.joshi
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DeleteWhat do min answer copy
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