राज्य की उत्पत्ति का विकासवादी सिद्धान्त
B.A. I, Political Science I / 2020
राज्य की उत्पत्ति का ऐतिहासिक अथवा विकासवादी सिद्धान्त
प्रश्न 6. "राज्य का विकास हुआ है, निर्माण नहीं।" इस कथन का विस्तार कीजिए तथा राज्य के
विकास में जिन तत्वों ने सहयोग दिया है, उन्हें स्पष्ट कीजिए।
अथवा '' राज्य की उत्पत्ति के ऐतिहासिक अथवा विकासवादी सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए।
अथवा '' आपकी दृष्टि से
राज्य की उत्पत्ति का कौन-सा सिद्धान्त सर्वाधिक उचित एवं स्वीकृत है और क्यों?
अथवा '' राज्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विकासवादी सिद्धान्त की
विवेचना कीजिए।
उत्तर -
राज्य की उत्पत्ति का ऐतिहासिक अथवा विकासवादी सिद्धान्त
आधुनिक समय में राज्य की उत्पत्ति का सर्वमान्य सिद्धान्त ऐतिहासिक अथवा
विकासवादी सिद्धान्त है।इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य न तो ईश्वरीय कृति है,न शक्ति या युद्ध से उत्पन्न हुआ है और न ही व्यक्तियों
के मध्य परस्पर समझौते का परिणाम है। इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य कृत्रिम संस्था
नहीं है, वरन् अनिवार्य प्राकृतिक
समुदाय है ।
राज्य की उत्पत्ति एक निश्चित समय पर नहीं हुई है वरन् मानव इतिहास के
अतीत से धीरे-धीरे विकसित होते हुए उसने अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त किया है।
राज्य का स्वरूप अपनी प्रारम्भिक अवस्था में आज जैसा नहीं था। राज्य का प्रारम्भिक रूप अत्यन्त लघु और अविकसित था। राज्य परिवार,गोत्र,जन, माम तथा समाज से विकसित होता हुआ अपने इस
स्वरूप को प्राप्त हुआ। इतिहास मैं ऐसी कोई अवस्था नहीं मिलती जब राज्य का
कोई-न-कोई स्वरूप विद्यमान न रहा हो ।
अरस्तू ने कहा है- "राज्य व्यक्ति के पूर्व से विद्यमान था। राज्य क्रमिक ऐतिहासिक विकास का
परिणाम है,इसे अब सभी विचारक
स्वीकार करते हैं"
·
गार्नर ने कहा है-
"राज्य न तो ईश्वरीय रचना है,न वह श्रेष्ठतम
शारीरिक शक्ति का परिणाम है, न किसी प्रस्ताव
या समझौते का परिणाम है और न ही परिवार का विस्तृत रूप है। राज्य कृत्रिम
यान्त्रिक कृति नहीं, वरन् ऐतिहासिक
विकास की प्राकृतिक संस्था है, जिसका क्रमिक
विकास हआ है।"
· राज्य के विकास में सहायक तत्त्व
(1) पितृमूलक और मातृमूलक परिवार -
राज्य के विकास
में परिवार की मुख्य भूमिका रही है । अरस्तू के अनुसार राज्य परिवार और ग्रामों का
समूह है । सर्वप्रथम व्यक्ति ने संगठित होकर परिवार को जन्म दिया और धीरे-धीरे
परिवार से गोत्र,गोत्र से जन तथा
जन से राज्य का विकास हुआ । इतिहास में पितृमूलक और मातृमूलक दोनों प्रकार के
परिवारों का वर्णन मिलता है। इस प्रकार पितृमूलक या मातृमूलक परिवारों को राज्य का
प्रारम्भिक बिन्दु माना जा सकता है।
(2) मानव की सहज सामाजिक प्रवृत्ति -
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह बिना समाज के
नहीं रह सकता । अरस्तू का मत है कि जो व्यक्ति समाज में नहीं रहता वह या तो
अरण्य पशु है या मानवेत्तर प्राणी है। राज्य के विकास में मनुष्य की इस सामाजिक
प्रवृत्ति का योगदान अधिक महत्त्वपूर्ण रहा है,क्योंकि स्वाभाविक प्रवृत्ति के कारण जब व्यक्ति समाज में
रहने लगा, तो समाज में व्यवस्था
बनाए रखने के लिए राज्य नामक संस्था का उदय हुआ।
(3) रक्त सम्बन्ध -
राज्य के विकास
में रक्त सम्बन्धों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। प्रारम्भिक समाज में रक्त
सम्बन्ध अधिक सुदृढ़ और एकता उत्पन्न करने वाले थे। प्रारम्भिक समाज का संगठन रक्त
सम्बन्धों पर ही आधारित था। इन्ही सम्बन्धों के विकसित होने से राज्य नामक संस्था
का निर्माण हुआ। इसी तथ्य के आधार पर मैकाइवर ने यह निष्कर्ष निकाला कि “रक्त सम्बन्ध समाज की रचना करता है और समाज अन्ततः राज्य का निर्माण करता
है।"
(4) धर्म -
रक्त सम्बन्ध की भाँति
धर्म भी राज्य के विकास में महत्त्वपूर्ण सहायक तत्त्व रहा है। यथार्थतः
प्रारम्भिक समाज में धर्म और रक्त सम्बन्ध परस्पर सम्बन्धित थे। ये दोनों एक ही
तत्त्व के दो पक्ष थे, जैसा कि गैटेल ने कहा है, “रक्त सम्बन्ध और धर्म एक ही वस्तु के दो रूप थे और समूह की एकता व उसके
कर्तव्यों को धार्मिक मान्यता प्राप्त थी।”
एक परिवार,गोत्र तथा जन का
एक ही धर्म होता था। अतः धर्म ने उनमें एकता की भावना उत्पन्न कर साथ-साथ रहने,
एक-सा आचरण करने तथा एक-से नियमों के अन्तर्गत
जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार प्रारम्भ में धर्म ने लोगों को
सत्ता व उसके नियमों के प्रति सम्मान का पाठ पढ़ाया तथा उनमें आज्ञापालन और
अनुशासन का भाव जाग्रत किया। इस प्रकार प्रारम्भिक समाज में रक्त सम्बन्ध के साथ
धर्म ने भी लोगों को एक सूत्र में बाँधा, जिससे राज्य के विकास को महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ।
प्रारम्भिक समाज में ही नहीं, अपितु आधुनिक समय
में भी राजनीतिक विकास में धर्म का महत्त्वपूर्ण स्थान है। पवित्र रोमन साम्राज्य
धर्म पर ही आधारित था। आधुनिक समय में पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान,
बांग्लादेश आदि देशों में धर्म का राजनीति से
गहरा सम्बन्ध है।
(5) शक्ति या युद्ध -
शक्ति या युद्ध भी राज्य
के विकास में सहायक रहा है। पाराम्भ में शक्ति ने राज्य के निर्माण व विकास में जो
योगदान दिया, उसी के कारण
राज्य की उत्पत्ति के शक्ति सिद्धान्त का प्रतिपादन हुआ । प्रारम्भिक समाज में
राज्य या शासन का उदय शक्ति के आधार पर ही हुआ। परिवार या कबीले का प्रधान
शक्तिशाली व्यक्ति होता था, जो अपनी शक्ति के
आधार पर लोगों पर नियन्त्रण भोर अनुशासन रखता था। प्रारम्भिक समाज में राज्य का
उदय तब हुआ जब समाज के बलवान लोगों ने निर्बलों पर आधिपत्य कर उन पर शासन करना
प्रारम्भ कर दिया।
(6) आर्थिक आवश्यकताएँ -
मनुष्य की आर्थिक आवश्यकताओं का भी राज्य के
विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अनेक विचारकों ने राज्य की उत्पत्ति आर्थिक कारणों से मानी है ।
अरस्तु का मत है कि जब तक व्यक्ति की
आवश्यकताएँ सीमित थीं, तब तक उनकी
पूर्ति परिवार करता था। किन्तु जब व्यक्ति और परिवार की आवश्यकताएँ बढ़ गईं,
तो परिवार का स्थान राज्य ने ले लिया।
प्लेटो,मैकियावली, हॉब्स, लॉक, एडम स्मिथ,
मॉण्टेस्क्यू, कार्ल मार्क्स और ऐंजिल्स आदि विचारक आर्थिक आवश्यकताओं को राज्य के
निर्माण का आवश्यक तत्त्व मानते हैं।
कार्ल मार्क्स ने ऐतिहासिक विकास की
व्याख्या आर्थिक आधार पर ही की है । समाज के विकास में वह आर्थिक स्थितियों को
विशेष महत्त्व देते हैं। उनकी मान्यता है कि आर्थिक विकास की स्थिति के अनुसार ही समाज का विकास-आखेट,पशुपालन, कषि तथा औद्योगिक चरणों में हुआ, जिसमें आर्थिक तत्त्वों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका
अदा की।
(7) राजनीतिक चेतना -
राज्य के विकास में अन्य तत्त्वों की अपेक्षा
सबसे अधिक योगदान मानव की राजनीतिक चेतना का है। समाज की प्रारम्भिक अवस्था म
राजनीतिक चेतना कम मात्रा में थी, किन्तु ज्ञान के
विकास और सभ्यता की प्रगति के साथ-साथ उसका विकास हुआ। जैसे-जैसे समाज की प्रगति
होती गई,राजनीतिक चेतना बढ़ती गई
। मनुष्य में कानून व्यवस्था, अनुशासन और
आज्ञापारन की प्रवृत्ति बलवती हुई और राजनीतिक चेतना के विकास के परिणामस्वरूप
राज्य की स्थापना व उसका विकास हुआ। गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राजनीतिक चेतना राज्य के विकास का सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।"
निष्कर्ष - इस प्रकार हम देखते हैं कि राज्य की उत्पत्ति तथा विकास में अनेक तत्त्वों ने अपना योगदान दिया है। राज्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जो अन्य सिद्धान्त प्रचलित हैं,उन सबकी थोड़ी-बहुत सत्यताओं को विकासवादी सिद्धान्त में ले लिया गया है। वर्तमान समय में राज्य की उत्पत्ति का ऐतिहासिक या विकासवादी सिद्धान्त ही सर्वमान्य है,जो यह बतलाता है कि राज्य विकास का परिणाम है, निर्मित नहीं । दूसरे शब्दों में राज्य का जन्म किसी एक निश्चित समय पर किसी एक कारण या तत्त्व से नहीं हुआ, वस्तुतः धीरे-धीरे उसका विकास हुआ है।
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